सियासत का गिरता स्तर... बच्चों की मौत पर भी राजनीति जारी है!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: January 6, 2020 07:48 AM2020-01-06T07:48:50+5:302020-01-06T07:48:50+5:30
राजस्थान के कोटा में बच्चों की मौत की खबर के बाद देश-प्रदेश में राजनीतिक बयानों की बाढ़ आ गई है. बीजेपी का बयान आया- ना जाने कितनी ही माओं का आंगन राजस्थान सरकार की नाकामियों की वजह से सूना हो गया.
राजस्थान के कोटा में बच्चों की मौत की खबर के बाद देश-प्रदेश में राजनीतिक बयानों की बाढ़ आ गई है. बीजेपी का बयान आया- ना जाने कितनी ही माओं का आंगन राजस्थान सरकार की नाकामियों की वजह से सूना हो गया.
पिछले एक महीने में कोटा में 100 से ज्यादा बच्चों की सांसे थम गईं और अस्पताल में मंत्रियों का स्वागत ग्रीन कार्पेट से किया जाता है. आखिर कब जागेगी संवेदनहीन अशोक गहलोत सरकार?
कांग्रेस ने जवाब दिया- राजकोटः 1 साल में 1235 मासूम बच्चों की मौत. अहमदाबाद एवं राजकोटः दिसम्बर में 219 मासूम बच्चों की मौत. अहमदाबादः पिछले 3 महीनो में 253 मासूम मौत के शिकार. मोदीजी चुप, शाहजी चुप!
उल्लेखनीय है कि पिछले एक महीने में राजकोट, कोटा, जोधपुर, बीकानेर जैसे शहरों में औसतन 100 से ज्यादा बच्चों ने दम तोड़ा है, तो सालभर में बीकानेर, रांची, राजकोट, भोपाल, लखनऊ आदि शहरों में औसतन 500 से 1000 बच्चों की मौतें हुई हैं.
ऐसे राज्यों में जहां बच्चों की मौतें हुई हैं, कांग्रेस और बीजेपी, दोनों दलों की सरकारें हैं, फिर ऐसे राजनीतिक बयानों का मतलब और मकसद क्या है?
विभिन्न दलों के नेताओं के जो बयान आ रहे हैं, उनमें साफ देखा जा सकता है कि उनमें संवेदना कम और सियासत ज्यादा है जबकि, जेके लोन में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत के मामले में जांच समिति ने लापरवाही को अस्पताल में मौत के लिए बड़ी वजह माना है, तो विभिन्न अस्पतालों में चिकित्सा संसाधनों, सुविधाओं की कमी, डॉक्टरों और स्टाॅफ की कमी आदि प्रमुख कारण रहे हैं. इनके अलावा प्री-मिच्योर डिलिवरी, घर पर डिलिवरी, बीमार बच्चों को अस्पताल लाने में देरी जैसे कारण भी हैं.
बच्चों की मौत पर एक-दूसरे पर राजनीतिक बयान देने के बजाय अपने-अपने राज्यों के अस्पतालों में व्यवस्थाएं सुधारने पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है.