नयी दिल्ली, 13 मार्च दिल्ली उच्च न्यायालय ने 21 वर्षीय एक युवक के खिलाफ आपराधिक मामले को रद्द करते हुए उसे यहां बंगला साहिब गुरुद्वारे में एक महीने की सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया है।
अदालत ने एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा कि युवक को अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना सीखने के साथ ही यह भी सीखना चाहिए कि उसे कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने हत्या के प्रयास के आरोप में युवक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि वह 21 साल का एक युवा है जिसके सामने उसका पूरा जीवन है। उन्होंने इस तथ्य का भी उल्लेख किया कि पक्षों ने एक समझौता कर लिया है।
अदालत ने उसे 16 मार्च से 16 अप्रैल, 2021 तक बंगला साहिब गुरुद्वारे में एक महीने की सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया और कहा कि एक महीने की अवधि पूरी होने पर उसे आदेश का अनुपालन दिखाने के लिए गुरुद्वारे से एक प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘युवा को अपने गुस्से को नियंत्रित करना सीखना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि वह कानून को हाथ में नहीं ले सकता।’’
अदालत ने कहा कि आरोपपत्र पर गौर करने पर यह पता चलता है कि पूछताछ के दौरान आरोपी ने कहा है कि जब वह अपनी मां के साथ बहस कर रहा था तो शिकायतकर्ता ने उसे थप्पड़ मार दिया और उसे अपमान महसूस हुआ और इसलिए, गुस्से में उसने एक सब्जी विक्रेता से चाकू लिया और शिकायतकर्ता पर वार कर दिया।
यह घटना मार्च 2020 में हुई थी और उस युवक के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
अदालत ने उल्लेखित किया कि उस युवक ने पहले ही हिरासत में एक महीना बिताया है और उसने अदालत में खेद व्यक्त किया है। साथ ही, अदालत में मौजूद शिकायतकर्ता ने कहा है कि कार्यवाही जारी रहने पर नौजवान की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी।
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