ठा. बांकेबिहारी के सोने-चांदी के हिण्डोलों व स्वतंत्रता दिवस में है खास संबंध

By भाषा | Updated: August 8, 2021 17:00 IST2021-08-08T17:00:27+5:302021-08-08T17:00:27+5:30

Tha. There is a special relationship between the gold and silver carousels of Banke Bihari and Independence Day. | ठा. बांकेबिहारी के सोने-चांदी के हिण्डोलों व स्वतंत्रता दिवस में है खास संबंध

ठा. बांकेबिहारी के सोने-चांदी के हिण्डोलों व स्वतंत्रता दिवस में है खास संबंध

मथुरा, आठ अगस्त स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त और ठाकुर बांके बिहारी के करीब 20 किलो सोने व करीब एक कुंतल चांदी से निर्मित सोने चांदी के हिंडोलों के बीच एक खास संबंध है। करीब 74 साल पहले 15 अगस्त के दिन ही वृन्दावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर एवं बरसाना के लाड़िलीजी मंदिर में श्रावण मास में भगवान को झुलाने के लिए सोने-चांदी के झूले (हिण्डोले) मंदिर को समर्पित किए गए थे।

यह एक संयोग है कि 15 अगस्त 1947 के दिन जब देशवासी पहला स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे, वृन्दावन के ठा. बांकेबिहारी भी उसी दिन श्रावण मास की तृतीया तिथि के अवसर पर हरियाली तीज, सोने व चांदी से बने अनुपम हिण्डोलों में झूलते हुए मना रहे थे।

कलकत्ता निवासी और ठाकुरजी के अनन्य भक्त सेठ हरगुलाल बेरीवाला ने स्वतंत्रता दिवस से कुछ दिन पूर्व ही ये हिण्डोले मंदिर प्रशासन को भेंट किए थे जिन्हें हरियाली तीज के अवसर पर ठाकुर जी की सेवा में प्रयोग किया जाना था, और उस दिन संयोग से 15 अगस्त था।

वैसे, ठाकुरजी के परम सेवक एवं मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास ने अपने समय में ही झूलोत्सव की परंपरा की शुरुआत कर दी थी, किंतु तब लता-पताओं के बने हिण्डोले में बांकेबिहारी को झुलाया जाता था। हरियाणा के बेरी गांव के मूल निवासी कोलकाता के बेरीवाल परिवार ने 1942 में सोने-चांदी का झूला बनवाने का संकल्प लिया था।

सेठ हरगुलाल के वंशज राधेश्याम बेरीवाला बताते हैं कि उनके पिता ठाकुरजी के परमभक्त थे और उनके दर्शन किए बिना अन्न का दाना भी स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने बताया था कि उस जमाने में सोने-चांदी के हिण्डोले बनवाने में 20 किलो सोना व करीब एक कुंतल चांदी प्रयोग की गई थी तथा हिण्डोलों के निर्माण में 25 लाख रुपए की लागत आई थी।

उन्होंने बताया कि हिण्डोलों के लिए बनारस के प्रसिद्ध कारीगर लल्लन व बाबूलाल को बुलाया गया था जिन्होंने टनकपुर (पिथौरागढ़) के जंगलों से शीशम की लकड़ी मंगवाई। इस लकड़ी को कटवाने के बाद पहले दो साल तक सुखाया गया, फिर हिण्डोलों के निर्माण का कार्य शुरु किया गया। इसके लिए बीस उत्कृष्ट कारीगरों ने लगभग पांच वर्ष तक कार्य किया। तब जाकर हिण्डोलों का निर्माण संभव हो पाया। हिण्डोले के ढांचे के निर्माण के पश्चात उस पर सोने व चांदी के पत्र चढ़ाए गए।

सेठ हरगुलाल ने इसी प्रकार का झूला बरसाना के लाड़िली जी मंदिर के लिए भी बनवाया। इससे पूर्व उन्होंने भरतपुर के जाट एवं मध्य भारत के मराठा राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया था। वहां भी इसी दिन हिण्डोला डाला गया जिस पर आज भी राधारानी परम्परागत रूप से झूला झूलती हैं।

ठा. बांकेबिहारी मंदिर के प्रबंधक मुनीश कुमार शर्मा एवं उमेश सारस्वत ने बताया, हरियाली तीज की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। पिछले वर्ष भक्तों को संक्रमण संबंधी पाबंदियों के कारण दर्शन सुलभ नहीं हो सके थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है, मंदिर खुला हुआ है।

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Web Title: Tha. There is a special relationship between the gold and silver carousels of Banke Bihari and Independence Day.

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