बिहार में बड़े पैमाने पर बहाल हुए हैं फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर शिक्षक, पटना हाईकोर्ट ने मांगा ब्योरा
By एस पी सिन्हा | Published: August 27, 2019 05:50 AM2019-08-27T05:50:24+5:302019-08-27T05:50:24+5:30
बिहार के सरकारी स्कूलों में फर्जी डिग्री पर नौकरी करने के मामले समय-समय पर आते रहे हैं. हाल ही में मोतिहारी में ऐसे ही एक मामले में दो दर्जन से अधिक शिक्षकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किया गया था.
बिहार के सरकारी स्कूलों में बड़े पैमाने पर फर्जी डिग्री के आधार पर बहाल शिक्षकों के मामले में पटना हाईकोर्ट ने सोमवार कड़ा रुख अपनाते हुए इस मामले में राज्य सरकार और निगरानी विभाग से अब तक की गई कार्रवाइयों का ब्योरा तलब किया है. रणजीत पण्डित की जनहित याचिका पर सोमवार पटना हाईकोर्ट में जस्टिस एस पांडेय की खंडपीठ ने सुनवाई की.
सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि इससे पहले कोर्ट ने निगरानी विभाग को इस मामले की जांच का जिम्मा दिया था, लेकिन जिन पर प्राथमिकी भी दायर की गई है वो शिक्षक भी काम कर रहे हैं और वेतन ले रहें हैं. कोर्ट ने राज्य सरकार और निगरानी विभाग द्वारा अब तक की गई कार्रवाईयों का पूरा रिपोर्ट अगली सुनवाई में पेश करने का निर्देश दिया है.
कोर्ट को यह भी बताया गया कि अभी भी बड़ी संख्या में फर्जी डिग्री पर शिक्षक इन सरकारी स्कूलों में कार्यरत हैं. इस मामले की अगली सुनवाई 6 सप्ताह बाद की जाएगी.
बता दें कि बिहार के सरकारी स्कूलों में फर्जी डिग्री पर नौकरी करने के मामले समय-समय पर आते रहे हैं. हाल ही में मोतिहारी में ऐसे ही एक मामले में दो दर्जन से अधिक शिक्षकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किया गया था.
हालांकि सरकार ने राज्य के हाई और मिडिल स्कूलों में शिक्षकों के नियोजन के लिए नया शिड्यूल भी जारी किया है, जिसमें काफी संख्या में अभ्यर्थी आवेदन करने वाले हैं. लेकिन कोर्ट के इस आदेश के बाद फर्जी डिग्री पर नौकरी करने वाले शिक्षकों में हड़कंप मचा है.
यहां उल्लेखनीय है कि साल 2005 में बिहार की सत्ता में आते ही नीतीश कुमार ने राज्य में कॉन्ट्रैक्ट आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति का फैसला लिया था. इसके तहत 2006 से 2011 के बीच करीब डेढ़ लाख शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी.
नीतीश सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को सुधारने और शिक्षित बेरोजगारों को काम देने के इस फैसले से काफी वाहवाही भी लूटी. लेकिन अब यही फैसला सरकार की मुश्किलें बढ़ा रहा है. उसकी व्यवस्था पर सवाल भी खडे कर रहा है.
हालात यह है कि बिहार में फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर करीब 74 हजार नियोजित शिक्षकों के रिकार्ड (नियोजन फोल्डर) खोजने में विजिलेंस टीम को पसीना छूट रहा है. पटना हाईकोर्ट की निगरानी में हो रही ऐसे शिक्षकों की जांच में नियोजन इकाईयां आड़े आ रही हैं. शिक्षा विभाग ने शिक्षकों के रिकॉर्ड मुहैया नहीं कराने वाली नियोजन इकाईयों पर फौरी कार्रवाई करने की छूट विजिलेंस विभाग को दी है ताकि दोषियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी जा सके.
वहीं, शिक्षा विभाग के मुताबिक विजिलेंस ब्यूरो की टीम द्वारा सभी जिलों में शिक्षक नियोजन प्रक्रिया की जांच जारी है. जांच में फर्जी डिग्री पर नियुक्त और एक ही डिग्री पर दो-दो जगह नौकरी कर रहे शिक्षकों का मामला भी सामने आ चुका है. निगरानी टीम ने अबतक 450 फर्जी नियोजित शिक्षकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है.
इनमें जहानाबाद में 42, बक्सर में 31, रोहतास में 29, भोजपुर में 16, मधुबनी एवं दरभंगा में 11-11, नवादा में 45, पटना, पूर्णिया, अररिया, मुजफ्फरपुर व मुंगेर में 1-1 शिक्षक शामिल हैं. इसके अलावा भोजपुर की नियोजन इकाई के तीन पदाधिकारियों पर भी प्राथमिकी दर्ज कराई गई है.
भोजपुर जिले में 13 ऐसे नियोजित शिक्षकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, जिन्होंने एक ही अंकपत्र व सर्टिफिकेट पर दो जिलों में नियुक्ति पत्र ले लिया और दोनों जगहों से वेतन उठाया. निगरानी ब्यूरो ने शिक्षकों के नियोजन संबंधी रिकॉर्ड की जांच के लिए सभी जिलों में अफसरों की तैनाती कर रखी है.
जांच में नियोजन इकाईयों के रिकार्ड रूम से नियोजित शिक्षकों के फोल्डर गायब पाये गये हैं. पहले के नियोजन प्रक्रिया में 234 मुखिया की भूमिका जांच में संदिग्ध पाया गया है. ये निगरानी टीम के रडार पर हैं. निगरानी की टीम ने फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर शिक्षकों की नियोजन प्रक्रिया में 22 दर्जन जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) और जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (डीपीओ) तथा 156 से ज्यादा प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (बीईओ) की भूमिका को संदिग्ध पाया है.