संजय राउत ने शिंदे सरकार पर तंज कसते हुए पूछा, "अगर 2019 में एनसीपी-भाजपा का गठबंधन नहीं टूटता तो क्या उसे 'अनैतिक' कहा जाता?"
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: July 17, 2022 02:21 PM2022-07-17T14:21:55+5:302022-07-17T14:37:18+5:30
शिवसेना शिंदे गुट के विधायकों ने कहा था कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में बनी महाविकास अघाड़ी की सरकार में शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ जो गठबंधन किया था, वो अनैतिक था।
मुंबई: महाराष्ट्र की नवगठित भाजपा-शिवसेना (शिंदे गुट) की सरकार को घेरते हुए शिवसेना (उद्धव गुट) के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने रविवार को प्रश्न खड़ा कि क्या साल 2019 में राज्य के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा-एनसीपी गठजोड़ "स्वाभाविक" था।
संजय राउत ने यह प्रश्न उस संबंध में की है, जिसमें शिवसेना शिंदे गुट के विधायकों ने कहा था कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में बनी महाविकास अघाड़ी की सरकार में शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ जो गठबंधन किया था, वो अनैतिक था।
भाजपा-शिवसेना के बीच चले लगभग तीन दशकों का गठबंधन साल 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद उस समय टूट गया था, जब 56 विधायकों वाली शिवसेना ने 105 विधायकों वाले भाजपा के सामने मुख्यमंत्री पद साझा करने की शर्त रख दी थी।
इसके बाद भाजपा ने सरकार बनाने के लिए एनसीपी नेता अजीत पवार से भीतरखाने बात की और उन्होंने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के खिलाफ बगावत करते हुए सरकार बनाने के लिए भाजपा से हाथ मिला लिया था।
राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने आनन-फानन में भाजपा नेता देवेंद्र फड़णवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ दिला दी थी, लेकिन भाजपा की यह रणनीति काम नहीं आयी और तीन दिन बाद अजीत पवार अपने चाचा शरद पवार की शरण में लौट आये और देवेंद्र फड़नवीस की सरकार गिर गई थी।
उसके बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और कांग्रेस से बात करके सूबे में महाविकास अघाड़ी सरकार बनाकर भाजपा के विपक्ष में बैठने पर मजबूर कर दिया था।
शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' के साप्ताहिक कॉलम 'रोकठोक' में संजय राउत ने कहा कि आज जिस तरह से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शिवेसना से बगावत करके भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई है, ठीक उसी तरह साल 2019 में अजीत पवार ने भी एनसीपी से बगावत करके भाजपा के साथ सरकार बनाई थी।
राउत लिखते हैं कि तब तो भाजपा विधायकों ने नेतृत्व के सामने यह नहीं कहा था कि एनसीपी उनकी पार्टी को खत्म कर देगी। राउत ने कहा, "अगर एसीपी-भाजपा का गठबंधन नहीं टूटता तो क्या उसे अनैतिक गठबंधन कहा जाता? राजनीति में कुछ भी नैतिक और अनैतिक नहीं नहीं होता है।"
इसके साथ ही संज राउत ने कहा, साल 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद जब सरकार गठन में देरी हुई तो एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने सरकार बनाने के लिए भाजपा को समर्थन देने की घोषणा कर दी थी। उन्होंने कहा, "एनसीपी चीफ शरद पवार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अच्छे संबंध थे और भाजपा ने उस समय भी एनसीपी के समर्थन अस्वीकार नहीं किया था।"
राउत ने व्यंग्य करते हुए कहा कि दीपक केसरकर और उदय सामंत जैसे बागी विधायक, जो आज शिंदे खेमे में हैं। कभी शरद पवार से "सर्टिफिकेट" लेकर शिवसेना में शामिल हुए थे। राउत ने कहा, "क्या उन्हें एनसीपी से नफरत करनी चाहिए? राजनीति में हमेशा नैतिकता से ज्यादा स्वार्थ हावी रहता है।"
राउत ने अपने लेख में दावा किया कि दिल्ली की सरकार कभी नहीं चाहती कि महाराष्ट्र का नेतृत्व स्वतंत्र रूप से शासन करे, वो इसे खींचकर हमेशा अपने नीचे रखना चाहता है। उन्होंने आरोप लगाया, "शिवसेना में इसलिए फूट पैदा की गई क्योंकि दिल्ली की सरकार इस बात को अच्छे समझ रही थी कि शिवेसना प्रमुख उद्धव ठाकरे भविष्य में राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभर सकते हैं।" (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)