सुषमा ने OIC में उठाया आतंकवाद का मुद्दा, कहा- 'अल्लाह के 99 नामों में से किसी का मतलब हिंसा नहीं है'
By भाषा | Updated: March 1, 2019 14:21 IST2019-03-01T14:09:44+5:302019-03-01T14:21:20+5:30
सुषमा स्वराज ने अपने संबोधन में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया।

सुषमा ने OIC में उठाया आतंकवाद का मुद्दा, कहा- 'अल्लाह के 99 नामों में से किसी का मतलब हिंसा नहीं है'
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (ओआईसी) की बैठक में शुक्रवार को आतंकवाद का मुद्दा उठाया और कहा कि यह महामारी ‘धर्म को तोड़मरोड़ कर पेश करने और भ्रमित आस्था’ के कारण पनपती है।
इस दो दिवसीय बैठक के उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुई स्वराज ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है। उन्होंने कहा, 'ऐसा हो भी नहीं सकता।'
स्वराज ने अपने संबोधन में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया। 57 सदस्यीय इस्लामिक समूह की बैठक में स्वराज ने कहा, 'जैसे की इस्लाम का मतलब अमन है और अल्लाह के 99 नामों में से किसी का मतलब हिंसा नहीं है। इसी तरह दुनिया के सभी धर्म शांति, करुणा और भाईचारे का संदेश देते हैं।'
स्वराज जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच उत्पन्न तनाव की पृष्ठभूमि में इस बैठक में हिस्सा ले रही हैं। जैश-ए-मोहम्मद द्वारा 14 फरवरी को किए गए इस आत्मघाती हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे।
'महात्मा गांधी की भूमि से शांति का संदेश'
सुषमा स्वराज ने कहा कि वह महात्मा गांधी की भूमि से आती हैं जहां हर प्रार्थना 'शांति' के आह्वान से खत्म होती है। सुषमा ने ऋगवेद का जिक्र करते हुए श्लोक पढ़ा और कहा, भगवान एक है लेकिन लोग उनकी अलग-अलग तरह से व्याख्या करते हैं। सुषमा स्वराज ने साथ ही कहा आतंकवाद आज के दौर में जिंदगियां बर्बाद कर रहा है।
भारत को 57 इस्लामिक देशों के समूह ने पहली बार अपनी बैठक में आमंत्रित किया है। स्वराज को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने शुक्रवार को कहा कि वह बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे क्योंकि समूह ने स्वराज को भेजा गया न्योता रद्द नहीं किया है।
कुरैशी ने गुरुवार को कहा था, 'ओआईसी हमार घर है इसलिए वह वहां जाएंगे, लेकिन स्वराज के साथ कोई बातचीत नहीं होगी।'
प्रमुख मुस्लिम देशों के नेताओं से स्वराज ने कहा, 'आतंकवाद और चरमपंथ के नाम अलग-अलग हैं। वे विभिन्न कारणों का हवाला देते हैं। लेकिन अपने मंसूबों में कामयाब होने के लिए वे धर्म को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं और भ्रमित आस्थाओं से प्रेरित होते हैं।'