सुप्रीम कोर्ट ने 9 साल बाद बदला धारा 377 पर हाई कोर्ट का फैसला, समलैंगिकता अब क्राइम नहीं

By भारती द्विवेदी | Published: September 6, 2018 10:25 AM2018-09-06T10:25:06+5:302018-09-06T12:07:42+5:30

17 जुलाई को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान ने धारा-377 की वैधता को चुनौती वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

supreme court verdict on homosexuality what is Section 377 Of the Indian penal code | सुप्रीम कोर्ट ने 9 साल बाद बदला धारा 377 पर हाई कोर्ट का फैसला, समलैंगिकता अब क्राइम नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने 9 साल बाद बदला धारा 377 पर हाई कोर्ट का फैसला, समलैंगिकता अब क्राइम नहीं

नई दिल्ली, 6 सितंबर:सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को धारा-377 (समलैंगिकता) पर अपना फैसला सुना दिया है। पांच जजों की बेंच ने ये तय किया है कि दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने शरीरिक संबध वैध है। मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस इंदु मल्होत्रा धारा-377 की वैधता पर सुनवाई कर रहे हैं।

17 जुलाई को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान ने धारा-377 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए ये कहा था कि इस कानून को पूरी तरह से रद्द नहीं किया जाएगा।

धारा-377 पर विवाद क्यों?

साल 1861 में अंग्रेजों ने धारा-377 को लागू किया था। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के मुताबिक सेम सेक्स के व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाना अप्राकृतिक है। अगर कोई व्यक्ति अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध बनाता है तो उसे उम्रकैद हो सकती है या फिर जुर्माने के साथ अधिकतम दस साल की जेल हो सकती है। और इसमें जमानत भी नहीं मिलती है। साथ ही इसमें आरोपी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए किसी भी वारंट की जरूरत नहीं पड़ती है।

एक संस्था ने धारा-377 को दी थी चुनौती

साल 2001 में नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में धारा-377 के खिलाफ याचिका दायर किया था। नाज फाउंडेशन सेक्स वर्करों के लिए काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था है। नाज फाउंडेशन दिल्ली हाईकोर्ट में याचिकादायर करके मांगी की थी कि जब दो लोग सहमति से संबंध बनाते हैं तो उसे धारा-377 से अलग किया जाए। नाज फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दो जुलाई 2009 में अपना फैसला सुनाया था। अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि दो लोग अगर सहमति से संबंध बनाते हैं तो वो अपराध के श्रेणी में नहीं आते हैं।

11 दिसंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले पलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता में सजा का प्रावधान उम्रकैद के कानून को बहाल रखने का फैसला किया था। लेकिन उसके बाद धारा-377 के खिलाफ अलग-अलग याचिका दायर किए गए। अब तक इस मामले में 30 याचिका दायर हुई हैं।

साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शुअलिटी को निजता का अधिकार घोषित किया। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस भेज जवाब मांग था। केन्द्र ने बाद में इस दंडात्मक प्रावधान की वैधता का मुद्दा अदालत के विवेक पर छोड़ दिया था। केन्द्र ने कहा था कि नाबालिगों और जानवरों के संबंध में दंडात्मक प्रावधान के अन्य पहलुओं को कानून में रहने दिया जाना चाहिए।

English summary :
IPC Dhara 377 supreme court Verdict Live Updates Breaking News Headlines: Supreme Court verdict on Section-377 (homosexuality) today. The bench of five judges will decide whether the physical mutual relationship between two adults is valid or not. Chief Justice of India Deepak Mishra, Justice Rohinton Nariman, Justice AM Khanvilkar, Justice D.V. Chandrachud and Justice Indu Malhotra hearing the validity of Section-377.


Web Title: supreme court verdict on homosexuality what is Section 377 Of the Indian penal code

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