'भारत के प्रधान न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआई के तहत आएगा या नहीं' इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को फैसला सुनाएगा। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ तीन अपीलों पर सुनवाई कर रही थी। अप्रैल में सुनवाई पूरी होने के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
यह अपील जजों के कामकाज को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए सबसे बड़ी दलील यह रही है कि इससे जनता में न्यायपालिका के लिए विश्वसनीयता बढ़ेगी और सिस्टम में अधिक पारदर्शिता आएगी। बता दें कि साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी हुई है जिसमें सीआईसी के आदेश को सही ठहराया गया था।
सीआईसी ने अपने फैसले में कहा था सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का दफ्तर आरटीआई के दायरे में है। सीआईसी और हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने 2010 में चुनौती दी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर स्टे कर दिया था और मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया गया।
मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा था, 'कोई नहीं चाहता कि सिस्टम में अपारदर्शिता रहे। कोई नहीं चाहता कि अंधेरे में काम हो और कोई किसी को अंधेरे में रखना नहीं चाहता। बहरहाल फैसला सुरक्षित रखा जाता है।'