सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान को आवाज का नमूना देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर लगाई रोक
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: August 24, 2023 10:58 AM2023-08-24T10:58:46+5:302023-08-24T11:02:57+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ट्रायल कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें आजम खान को साल 2007 में बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ कथित तौर पर नफरत भाषण देने के आरोप में आवाज का नमूना देना था।

फाइल फोटो
नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ट्रायल कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान को साल 2007 में बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ कथित तौर पर नफरत फैलाने वाला भाषण देने और अपमानजनक भाषा के प्रयोग में आवाज का नमूना देने का आदेश था।
ट्रायल कोर्ट ने सपा नेता आजम खान को आदेश दिया था कि वो अपनी आवाज का नमूना दें, ताकि उनके साल 2007 में रामपुर के टांडा इलाके में दिये उस भाषण से मिलान कराया जा सके, जिसमें उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग दिया था।इस संबंध में सर्वोच्च अदालत के न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा की पीठ ने आजम खान द्वारा दायर याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और मामले में शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, "याचिकाकर्ता के आवेदन पर प्रतिवादी को नोटिस जारी किया जाता है। इस बीच ट्रायल कोर्ट द्वारा 29 अक्टूबर 2022 को दिये गये आदेश अंतरिम रोक रहेगी, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 25 जुलाई, 2023 को बरकरार रखा था।"
आजम खान ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 25 जुलाई के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसने उनकी याचिका का निपटारा करते हुए रामपुर में ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था।
मालूम हो कि साल 2007 में आजम खान के खिलाफ टांडा पुलिस स्टेशन में एससी/एसटी एक्ट के तहत धीरज कुमार शील नामक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने सपा नेता खान पर नफरत फैलाने वाला भाषण देने और कथित तौर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।
इस मामले में रामपुर पुलिस ने धीरज कुमार शील की शिकायत पर आजम खान के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 171-जी (चुनाव के संबंध में गलत बयान) के तहत मामला दर्ज किया था। इसके साथ ही पुलिस ने खान के खिलाफ लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराओं में भी केस दर्ज किया था।