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सुप्रीम कोर्ट ने लश्कर-ए-तैयबा के संदिग्ध को जमानत देने के आदेश पर लगाई रोक

By भाषा | Updated: December 3, 2019 18:13 IST

शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेन्सी मोहम्मद इरफान गौस को कथित आतंक के मामले के सिलसिले में फिर से गिरफ्तार करने के लिये स्वतंत्र है। इस संदिग्ध व्यक्ति को उच्च न्यायालय ने इस साल जुलाई में जमानत दे दी थी।

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ठळक मुद्देउच्चतम न्यायालय ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के कथित सदस्य को जमानत देने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी है। राष्ट्रीय जांच एजेन्सी ने दलील दी थी कि आरोपी को जमानत पर रिहा करने से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। 

उच्चतम न्यायालय ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के कथित सदस्य को जमानत देने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी है। इससे पहले, राष्ट्रीय जांच एजेन्सी ने दलील दी थी कि आरोपी को जमानत पर रिहा करने से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेन्सी मोहम्मद इरफान गौस को कथित आतंक के मामले के सिलसिले में फिर से गिरफ्तार करने के लिये स्वतंत्र है। इस संदिग्ध व्यक्ति को उच्च न्यायालय ने इस साल जुलाई में जमानत दे दी थी। जांच एजेन्सी ने आरोप लगाया था कि अगस्त, 2012 को गिरफ्तार किया गया गौस प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा का सदस्य है और उसने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर आतंकी वारदात के लिये नांदेड़ और हैदराबाद के इलाकों की टोह ली थी। 

राष्ट्रीय जांच एजेन्सी की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ से कहा कि इस मामले की सुनवाई अब पूरी होने वाली है और यदि गौस को छोड़ा गया तो फैसले के वक्त उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करना मुश्किल हो जायेगा। 

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इस तथ्य के मद्देनजर कि पेश मामले की सुनवाई पूरी होने की कगार पर है और तथ्यों तथा परिस्थितियों के आलोक में अगले आदेश तक इस पर रोक लगी रहेगी।’’ पीठ ने कहा, ‘‘इस न्यायालय के अंतरिम आदेश को देखते हुये याचिकाकर्ता राष्ट्रीय जांच एजेन्सी मोहम्मद इरफान गौस को फिर से गिरफ्तार करके उसे हिरासत में लेने के लिये स्वतंत्र है।’’ 

इस मामले में की सुनवाई के दौरान मेहता ने कहा कि आरोपी के खिलाफ आरोपों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुये यदि उसे रिहा किया गया तो ऐसा अपराध होने की पूरी संभावना है जिससे राष्ट्र की सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। मेहता ने कहा कि इस मामले में 72 गवाहों से पूछताछ हो चुकी है और सिर्फ दो सरकारी गवाहों से पू्छताछ ही बाकी है। 

प्रारंभ में महाराष्ट्र के आतंक निरोधक दस्ते ने इस मामले में गैरकानूनी गतिविधयां (निरोधक) कानून और भारतीय दंड संहिता तथा शस्त्र कानून के प्रावधानों के तहत आरोप पत्र दाखिल किया था। लेकिन बाद में 2013 में यह मामला राष्ट्रीय जांच एजेन्सी को सौंप दिया गया था। 

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