उच्चतम न्यायालय ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी महाराष्ट्र का कानून निरस्त किया

By भाषा | Published: May 5, 2021 01:42 PM2021-05-05T13:42:58+5:302021-05-05T13:42:58+5:30

Supreme Court repeals Maharashtra law granting reservation to Maratha community | उच्चतम न्यायालय ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी महाराष्ट्र का कानून निरस्त किया

उच्चतम न्यायालय ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी महाराष्ट्र का कानून निरस्त किया

नयी दिल्ली, पांच मई उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र की शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश आर सरकारी नौकरियों मराठा समुदाय को आरक्षण देने संबंधी राज्य के कानून को ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए बुधवार को इसे खारिज कर दिया।

न्यायालय ने कहा कि 1992 में मंडल फैसले के तहत निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा के उल्लंघन के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है।

न्यायालय ने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत पर तय करने के 1992 के मंडल फैसले (इंदिरा साहनी फैसले) को पुनर्विचार के लिए वृहद पीठ के पास भेजने से भी इनकार कर दिया और कहा कि विभिन्न फैसलों में इसे कई बार बरकरार रखा है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान तैयार तीन बड़े मामलों पर सहमति जताई और कहा कि मराठा समुदाय के आरक्षण की आधार एम सी गायकवाड़ आयोग रिपोर्ट में समुदाय को आरक्षण देने के लिए किसी असाधारण परिस्थिति को रेखांकित नहीं किया गया है।

पीठ ने चार फैसले दिए और मराठा समुदाय को आरक्षण देने को अवैध करार देने समेत तीन बड़े मामलों पर सर्वसम्मति जताई।

संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एल एन राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने 102वें संशोधन की संवैधानिक वैधता बरकरार रखने को लेकर न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर के साथ सहमति जताई, लेकिन कहा कि राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की सूची पर फैसला नहीं कर सकते और केवल राष्ट्रपति के पास ही इसे अधिसूचित करने का अधिकार है।

न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति नजीर ने अल्पमत के फैसले में कहा कि केंद्र एवं राज्य के पास एसईबीसी की सूची पर फैसला करने का अधिकार है।

इस संबंध में बहुमत के आधार पर लिए गए फैसले में केंद्र को एसईबीसी की एक ताजा सूची अधिसूचित करने का निर्देश दिया गया और कहा गया कि अधिसूचना जारी किए जाने तक मौजूदा सूची बरकरार रहेगी।

शीर्ष अदालत ने राज्य को असाधारण परिस्थितियों में आरक्षण के लिए तय 50 प्रतिशत की सीमा तोड़ने की अनुमति देने समेत विभिन्न मामलों पर पुनर्विचार के लिए मंडल फैसला बृहद पीठ को भेजने से सर्वसम्मति से इनकार कर दिया।

पीठ ने यह भी कहा कि आरक्षण के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के शीर्ष अदालत के नौ सितंबर, 2020 के आदेश और मराठा आरक्षण को बरकरार रखने के 2019 के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के बाद सरकारी नौकरियों में की गई नियुक्तियां एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में किए गए दाखिले प्रभावित नहीं होंगे।

शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने राज्य में शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठों के लिए आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा था।

2018 के 102वें संविधान संशोधन कानून से अनुच्छेद 338बी और अनुच्छेद 342ए को शामिल किया गया है। अनुच्छेद 338बी में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना, कर्तव्यों एवं शक्तियों का जिक्र किया गया है और अनुच्छेद 342ए एसईबीसी के तौर पर किसी विशेष जाति को अधिसूचित करने की राष्ट्रपति की शक्ति और सूची में बदलाव की संसद की शक्ति से जुड़ा है।

शीर्ष अदालत ने आठ मार्च को छह प्रश्न बनाए थे, जिन पर फैसला किया जाना था और उसने 102वें संविधान संशोधन की व्याख्या के मामले को अति महत्वपूर्ण बताया था।

पीठ ने सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए कहा था कि वह इस मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगी कि क्या इंदिरा साहनी मामले में 1992 में आए ऐतिहासिक फैसले, जिसे ‘मंडल फैसला’ के नाम से जाना जाता है, उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

उच्चतम न्यायालय ने 1992 में अधिवक्ता इंदिरा साहनी की याचिका पर ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी थी।

उच्चतम न्यायालय ने पांच फरवरी को कहा था कि शिक्षा एवं नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने से संबंधित महाराष्ट्र के 2018 के कानून को लेकर दाखिल याचिकाओं पर वह आठ मार्च से अदालत कक्ष के साथ ही ऑनलाइन सुनवाई शुरू करेगा।

मामले की सुनवाई की तारीख तय करने वाली पीठ ने कहा था कि वह 18 मार्च को मामले की सुनवाई पूरी कर लेगी।

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Web Title: Supreme Court repeals Maharashtra law granting reservation to Maratha community

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