NDA की परीक्षा दे सकेंगी महिलाएं, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा आदेश, दाखिले पर फैसला बाद में आएगा
By विनीत कुमार | Published: August 18, 2021 12:34 PM2021-08-18T12:34:25+5:302021-08-18T12:48:49+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 5 सितंबर को होने वाली एनडीए की परीक्षा में लड़कियों के हिस्सा लेने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने अब तक इस परीक्षा में महिलाओं को हिस्सा नहीं लेने देने के लिए फटकार भी लगाई।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की परीक्षा में लड़कियों को भी हिस्सा लेने की मंजूरी दे दी है। कोर्ट ने बुधवार को इस संबंध में सुनवाई करते हुए आदेश जारी करते हुए कहा कि महिला उम्मीदवार भी इस साल 5 सितंबर को एनडीए की होने वाली परीक्षा में बैठ सकती हैं।
कोर्ट ने हालांकि कहा कि नामांकन को लेकर कोर्ट के अंतिम आदेश में स्थिति स्पष्ट की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही एनडीए की परीक्षा में लड़कियों को हिस्सा नहीं लेने देने के लिए फटकार भी लगाई। सेना ने इस मामले में अपने जवाब में कहा कि ये नीतिगत फैसला है। इस पर कोर्ट ने कहा कि ये नीतिगत फैसला 'लैंगिक भेदभाव' पर आधारित है।
Supreme Court orders allowing women to take the National Defence Academy (NDA) exam scheduled for September 5th. The Apex Court says that admissions will be subject to the final orders of the court pic.twitter.com/8YVgaxz5O8
— ANI (@ANI) August 18, 2021
गौरतलब है कि इस मुद्दे पर मार्च में कोर्ट ने केंद्र को भी नोटिस जारी किया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि महिलाओं को केवल लिंग के आधार पर एनडीए में शामिल नहीं किया जाता है जो समानता के मौलिक अधिकारों का कथित उल्लंघन है।
वकील कुश कालरा की तरफ से दायर याचिका में पिछले वर्ष फरवरी के ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया गया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सेना की महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन और कमान पदस्थापन देने का निर्देश दिया था।
याचिका में कहा गया कि अधिकारी बारहवीं परीक्षा पास अविवाहित पुरुष उम्मीदवारों को ‘राष्ट्रीय रक्षा अकामदी एवं नौसेना अकादमी की परीक्षा’ में बैठने की अनुमति देते हैं लेकिन योग्य एवं इच्छुक महिला उम्मीदवारों को परीक्षा देने की अनुमति महज लिंग के आधार पर नहीं देते हैं।
इसमें संविधान के तहत कोई उचित कारण भी नहीं दिए जाते हैं। इसमें आरोप लगाया गया कि भेदभाव का यह कृत्य समानता और भेदभाव नहीं करने के संवैधानिक मूल्यों का ‘‘अपमान’’ है।