नई दिल्ली, 31 जुलाई: बोहरा मुस्लिम समुदाय में औरतों का खतना करने की प्रथा के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना पक्ष रखा है। सोमवार को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा है कि महिला की जिंदगी सिर्फ पति और बच्चों के लिए नहीं है, उसकी अपनी इच्छाएं भी हो सकती हैं।
केवल खुद को पति को समर्पित कर देना ही कर्तव्य नहीं है। कोर्ट ने माना कि पहली नज़र में ये प्रथा महिला की गरिमा को चोट पहुंचाने वाली लगती है। कोर्ट में धार्मिक संगठनों के द्वारा खतना पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी जिस पर कोर्ट में सोमवार को सुनवाई की गई थी। इस याचिका में खतना को गंभीर अपराधों की श्रेणी में रखने की अपील की गई है।
इतना ही नहीं इसको गैरजमानती अपराधों में रखने की बात भी कही गई है। ऐसे में अब इस मामले की सुनवाई आज (मंगलवार) को फिर से की जाएगी।वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की सुनवाई के दौरान बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग बच्चियों का खतना किए जाने पर सवाल उठाए हैं।
इस सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा है कि एक महिला सिर्फ अपने पति की पसंदीदा बनने के लिए ऐसा क्यों करे? क्या वो पालतू मवेशी है? उसकी भी अपनी पहचान है। ये व्यवस्था भले ही धार्मिक हो, लेकिन पहली नज़र में महिलाओं की गरिमा के खिलाफ नजर आती है। कोर्ट में ये भी कहा गया है कि दुनियाभर में इस तरह की सभी प्रथाएं बंद हो चुकी हैं।
इतना ही नहीं खुद इस्लाम भी मानता है, जहां रहो, वहां के कानून का सम्मान करो। यहां तक की किसी को भी बच्ची के जननांग छूने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए। आईपीसी की धारा 375 की बदली हुई परिभाषा में ये बलात्कार के दायरे में आता है। बच्ची के साथ ऐसा करना पॉक्सो एक्ट के तहत भी अपराध है।
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