धारा 377 के खिलाफ दायर याचिका पर 10 जुलाई से सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई
By भारती द्विवेदी | Published: July 6, 2018 05:50 AM2018-07-06T05:50:06+5:302018-07-06T05:50:06+5:30
याचिका में कहा गया है कि धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला दोषपूर्ण है।
नई दिल्ली, 6 जुलाई: 10 जुलाई से सुप्रीम कोर्ट का संविधान बेंच भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करेगा। धारा-377 के हिसाब से समलैंगिकता एक दंडनीय अपराध है। इसी साल मई में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एलजीबीटी एल्यूमिनी एसोसिएशन ने धारा-377 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया था। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई का फैसला किया था।
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इसी साल 27 अप्रैल को हमसफर ट्रस्ट के अशोक राव कवि और आरिफ जाफर ने भी धारा-377 के खिलाफ याचिका दायर की थी। इसके ठीक छह दिन पहले होटल कारोबारी केशव सूरी ने भी इसी संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया था।
23 अप्रैल को द ललित सूरी हॉस्पिटैलिटी ग्रुप के कार्यकारी निदेशक केशव सूरी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। केशव सूरी ने अपनी याचिका में सेक्सुअल पसंद को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक अधिकार घोषित करने की मांग की है। अपनी याचिका में उन्होंने मांग की है कि आपसी सहमति से दो समलैंगिक वयस्कों के बीच यौन संबंध से अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होने के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट समाप्त करे। सूरी ने वकील मुकुल रोहतगी के माध्यम से यह याचिका दायर की है।
हाल ही में केशव सूरी ने अपने पार्टनर सेरिल फ्यूलेबोइिस के साथ पेरिस में शादी की है। साल 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने धारा 377 समलैंगिकता को दंडनीय अपराध की कैटगेरी से बाहर कर दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के बेंच ने इस आदेश को रोक दिया था। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में पहले धारा 377 पर कोर्ट द्वारा लिए गए फैसले को दोषपूर्ण बताया गया है।
बता दें कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अनुसार सेम सेक्स के दो लोगों के बीच सेक्सुअल इंटरकोर्स अनैचुरल यानी प्रकृतिक के खिलाफ माना गया है। ऐसा करने पर आजीवन कारावास का प्रावधान है।
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