सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की महाराष्ट्र सरकार की याचिका, अनिल देशमुख के खिलाफ CBI जांच न करने की थी मांग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 18, 2021 17:05 IST2021-08-18T17:00:57+5:302021-08-18T17:05:42+5:30

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि वह बंबई उच्च न्यायालय के 22 जुलाई के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती।

Supreme Court dismisses former Maharashtra Home Minister Anil Deshmukh challenging a Bombay High Court CBI FIR  | सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की महाराष्ट्र सरकार की याचिका, अनिल देशमुख के खिलाफ CBI जांच न करने की थी मांग

पुलिस अधिकारी की बहाली से संबंधित दो पैराग्राफ हटाने का अनुरोध किया गया था।

Highlightsपीठ ने याचिका खारिज कर दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को इस मामले की सीबीआई द्वारा स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच होने देना चाहिए।यह साफ होना चाहिए कि इसमे छिपाने के लिये कुछ भी नहीं है।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के मामले में उनके खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था। सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी से पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण, तैनाती और एक पुलिस अधिकारी की बहाली से संबंधित दो पैराग्राफ हटाने का अनुरोध किया गया था।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि वह बंबई उच्च न्यायालय के 22 जुलाई के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती। इसके साथ ही पीठ ने याचिका खारिज कर दी। न्यायालय ने कहा कि किन पहलुओं पर जांच होगी यह निर्धारित कर वह केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने के संवैधानिक अदालत के आदेश को कमतर नहीं कर सकता।

पीठ ने कहा, “सीबीआई को आरोपों के सभी पहलुओं की जांच करनी है और हम उन्हें सीमित नहीं कर सकते। यह संवैधानिक अदालत की शक्तियों को नकारने जैसा है।” पीठ ने कहा कि यह धारणा बनाई जा रही है कि राज्य पुलिस अधिकारियों के तबादलों और तैनाती तथा अतिरिक्त पुलिस निरीक्षक सचिन वाझे की बहाली के पहलुओं पर जांच की अनुमति नहीं देकर पूर्व गृह मंत्री को बचाने की कोशिश कर रहा है।

पीठ ने कहा, “कौन सी राज्य सरकार सीबीआई जांच का आदेश देगी जब आरोप उसके खुद के गृहमंत्री या किसी अन्य मंत्री के खिलाफ हों? वह अदालत है जिसे जांच का आदेश देने के लिये अपनी शक्तियों का उपयोग करना होगा और उच्च न्यायालय ने वही किया।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को इस मामले की सीबीआई द्वारा स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच होने देना चाहिए और यह साफ होना चाहिए कि इसमे छिपाने के लिये कुछ भी नहीं है। महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता राहुल चिटनिस ने कहा कि राज्य ने सीबीआई जांच के लिये दी गई सहमति वापस ले ली है और सीबीआई जांच के लिये उच्च न्यायालय का निर्देश बार और रेस्तरां से रुपये लेने के आरोपों तक ही सीमित है न कि पुलिस अधिकारियों के तबादले और तैनाती तथा पुलिस बल में वाझे की बहाली से संबंधित है।

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह द्वारा लिखे गए पत्र में सिर्फ बार और रेस्तरां से 100 करोड़ रुपये एकत्रित किए जाने के बारे में आरोप है। चिटनिस ने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय ने कहा था कि परमबीर सिंह मंत्री द्वारा पुलिस कर्मियों के तबादले और तैनाती में अनुचित रुख अपनाए जाने को लेकर उचित मंच के समक्ष उपायों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

पीठ ने कहा कि जिस तरह पुलिस के पास दर्ज प्राथमिकी से संबंधित हर चीज की जांच की शक्तियां हैं उसी तरह सीबीआई को भी परमबीर सिंह के पत्र में लगाए गए आरोपों से संबंधित सभी पहलुओं की जांच करनी है। पीठ ने कहा, “हम सीबीआई को यह लकीर खींचकर नहीं बता सकते कि आप इसकी जांच कर सकते हैं और इसकी जांच नहीं कर सकते हैं।

उसे यह देखना होगा कि पूर्व मंत्री के कार्यकाल में किस तरीके से स्थानांतरण और तैनाती की प्रक्रियाओं का पालन किया गया।” पीठ ने कहा, “माफ कीजिए, हम उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप के इच्छुक नहीं हैं” और याचिका को खारिज कर दिया।

उच्च न्यायालय ने 22 जुलाई को कहा था कि महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख और उनके सहयोगियों की सांठगांठ का पता लगाने के लिए सीबीआई मुंबई पुलिस बल में पुलिस कर्मियों के तबादले और तैनाती तथा वाजे की बहाली के मामले में गौर कर सकती है। 

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