नई दिल्ली: बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन भले ही जेल से रिहा हो गए हों, लेकिन उनकी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। दरअसल, भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डाले गए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी ने जेल से उनकी (आनंद मोहन की) समय पूर्व रिहाई को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जिसके बाद कोर्ट ने उमा की याचिका को सूचीबद्ध कर दिया है।
ऐसे में अब 8 मई को याचिका को सूचीबद्ध किया गया है। बिहार की जेल नियमावली में संशोधन के बाद गुरुवार (27 अप्रैल) सुबह आनंद मोहन को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया। जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने याचिका में दलील दी थी कि गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन को सुनाई गई उम्रकैद की सजा उनके पूरे जीवनकाल के लिए है और इसकी व्याख्या महज 14 वर्ष की कैद की सजा के रूप में नहीं जा सकती।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा, "जब मृत्यु दंड की जगह उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है, तब उसका सख्ती से पालन करना होता है, जैसा कि न्यायालय का निर्देश है और इसमें कटौती नहीं की जा सकती।" आनंद का नाम उन 20 कैदियों में शामिल है, जिन्हें जेल से रिहा करने के लिए राज्य के कानून विभाग ने इस हफ्ते की शुरूआत में एक अधिसूचना जारी की थी क्योंकि वे जेल में 14 वर्षों से अधिक समय बिता चुके हैं।
बिहार जेल नियमावली में राज्य की महागठबंधन सरकार द्वारा 10 अप्रैल को संशोधन किये जाने के बाद सजा घटा दी गई, जबकि ड्यूटी पर मौजूद लोकसेवक की हत्या में संलिप्त दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर पहले पाबंदी थी।
उल्लेखनीय है कि तेलंगाना के रहने वाले जी कृष्णैया की 1994 में एक भीड़ ने उस वक्त पीट-पीटकर हत्या कर दी, जब उनके वाहन ने मुजफ्फरपुर जिले में गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शवयात्रा से आगे निकलने की कोशिश की थी। तत्कालीन विधायक आनंद मोहन शवयात्रा में शामिल थे।