हरियाणा में चुनावी घोषणापत्र लागू करने की जद्दोजहद, BJP-JJP गठबंधन सरकार ने आर्थिक बोझ पर किया विचार
By बलवंत तक्षक | Updated: November 30, 2019 08:52 IST2019-11-30T08:52:05+5:302019-11-30T08:52:05+5:30
गृह मंत्री अनिल विज की अगुवाई में बनी समिति की यहां हुई पहली बैठक में विचार किया गया कि इन वादों को लागू करने से राज्य पर कितना आर्थिक बोझ आएगा.

हरियाणा में चुनावी घोषणापत्र लागू करने की जद्दोजहद, BJP-JJP गठबंधन सरकार ने आर्थिक बोझ पर किया विचार
हरियाणा विधानसभा चुनावों के दौरान लोगों से किये वादे लागू करने को लेकर भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार की तरफ से गठित समिति ने मंथन करना शुरू कर दिया है. गृह मंत्री अनिल विज की अगुवाई में बनी समिति की यहां हुई पहली बैठक में विचार किया गया कि इन वादों को लागू करने से राज्य पर कितना आर्थिक बोझ आएगा.
बैठक में इस बात को लेकर भी चर्चा हुई कि इन वादों को लागू करने में कोई कानूनी दिक्कतें तो नहीं आएंगी. इस बारे में संबंधित विभागों से भी रिपोर्ट मांगी गई है. भाजपा-जजपा समिति की चुनावी वादों पर न्यूनतम साझा कार्यक्र म लागू करने के मुद्दे पर 15 दिन बाद फिर एक बैठक होगी.
इस समिति में गृह मंत्री अनिल विज के अलावा शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुर्जर और पूर्व कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ और जजपा के राज्य मंत्री अनूप धानक तथा पूर्व विधायक राजदीप फौगाट शामिल हैं. कांग्रेस पार्टी की तरफ से अभी से सवाल उठाए जाने लगे हैं कि सत्ता में आने के फौरन बाद पहली कलम से चुनावी वादे लागू कर देने की दिशा में एक महीना बीत जाने के बाद भी भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने अभी कोई फैसला क्यों नहीं लिया है?
विधानसभा चुनावों से पहले जजपा ने लोगों से वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद किसानों के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे, बुजुर्गों को 5,100 रु पए मासिक सम्मान पेंशन दी जाएगी और औद्योगिक संस्थानों में 75 फीसदी रोजगार हरियाणा के युवाओं को दिया जाएगा. जजपा और कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र लगभग एक जैसे ही थे. तब भाजपा ने तंज कसा था कि इन चुनावी वादों को लागू करने के लिए एक लाख 26 हजार करोड़ की अतिरिक्त जरूरत पड़ेगी और इतनी बड़ी राशि का बंदोबस्त करना हरियाणा के लिए संभव नहीं हो पाएगा.
भाजपा को इस बार सरकार बनाने के लिए दुष्यंत चौटाला की जजपा का समर्थन लेना पड़ा है और इसी क्र म में चुनावी वादे लागू करने को लेकर दोनों पार्टियों की एक साझा समिति भी गठित करनी पड़ी है. चूंकि, हरियाणा पहले ही एक लाख 41 हजार करोड़ के कर्ज का बोझ झेल रहा है, ऐसे में चुनावी वादों को लागू करना मुश्किल लगता है. फिर भी गठबंधन सरकार को लोगों की नाराजगी से बचने के लिए कोई न कोई रास्ता तलाशना ही पड़ेगा.