कोलकाता: पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में मतदान के दिन बीते शनिवार को राज्य भर में हुए बड़े पैमाने पर हिंसा और बूथ कैप्चरिंग में 18 लोगों के मारे जाने के बाद राज्य चुनाव आयोग सीधे तौर पर निशाने पर है, जिसकी जिम्मेदारी थी शांतिपूर्ण, निष्पक्ष मतदान को संपन्न कराने की। राज्य में हुए चुनावी हिंसा को लेकर राज्य चुनाव न केवल सवालों के कटघरे में खड़ी है, बल्कि उसकी व्यापक आलोचना भी हो रही है।
जानकारी के अनुसार बंगाल में 8 जून को पंचायत चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद से 37 लोग चुनावी हिंसा के भेट चढ़े हैं। इस संबंध में राज्य चुनाव आयोग के प्रमुख राजीव सिन्हा ने शनिवार सुबह में पत्रकारों से कहा था, “हिंसा की घटनाओं के संबंध में पुलिस शिकायतों पर जांच और गिरफ्तारियां होंगी। पुलिस आरोपों के संबंध में कार्रवाई करेगी। आयोग को लगातार फोन आ रहे हैं। चुनाव बूथों पर हिंसा की लगभग 1,200-1,300 शिकायतें मिली हैं। इस कारण न तो यह कहना ठीक होगा कि चुनाव शांतिपूर्ण रहे और न ही यह कहना सही होगा कि बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले हमें राज्य भर से मिली रिपोर्टों का विश्लेषण करना होगा।"
समाचार वेबसाइट हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार राज्य के गवर्नर सीवी आनंद बोस पंचायत चुनाव में हिंसा रोकने में विफलता और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की हिंसा संभावित क्षेत्रों में तैनाती को लेकर की गई राज्य चुनाव आयोग की कथित हिला-हवाली को लेकर सीधे तौर पर राज्य चुनाव आयोग और उसे प्रमुख राजीव सिन्हा को जिम्मेदार बता रहे हैं और साथ ही विपक्ष जल कांग्रेस और भाजपा भी इसी तरह का आरोप लगा रहे हैं।
विपक्षी दल कांग्रेस और भाजपा का आरोप है कि राज्य चुनाव आयोग ने हिंसा को रोकने के लिए संवेदनशील मतदान क्षेत्रों में पर्याप्त केंद्रीय बल तैनात नहीं किया, जिससे हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाये जा सके। सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम ने हिंसा पर कहा, “ये हिंसा उस दिन से शुरू हो गया था, जब जून में आयोग ने चुनाव की तारीखों की ऐलान किया था। तारीखों की घोषणा के अगले दिन से हिंसा शुरू हो गई। इन मौतों के लिए सीधे तौर पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, राज्य चुनाव आयोग के प्रमुख राजीव सिन्हा और राज्य पुलिस के प्रमुख जिम्मेदार हैं।”
वहीं कांग्रेस नेता कौस्तव बागची ने चुनावी हिंसा को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस टीएस शिवगणनम को पत्र भेजा और कोर्ट से चुनावी हिंसा पर हस्तक्षेप करने की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने राज्य चुनाव आयोग के प्रमुख राजीव सिन्हा के हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए टीटागढ़ पुलिस स्टेशन में शिकायत भी दर्ज कराई।
कांग्रेस नेता कौस्तव बागची ने अपनी शिकायत में लिखा, "मैं मौजूदा पंचायत चुनाव में हो रही हिंसा के संबंध में तत्काल न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करता हूं। राज्य चुनाव आयोग और राज्य प्रशासन की शह पर सत्तारूढ़ दल के इशारे पर राज्य में हिंसा की घटनाएं हो रही हैं।"
सीपीएम और कांग्रेस के अलावा पंचायत चुनाव में हुई हिंसा पर रोष व्यक्त करते हुए बंगाल विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि भाजपा मंगलवार को अदालत का रुख करेगी। इसके साथ ही शनिवार शाम को एक दिलचस्प घटना हुई, जब भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी हिंसा को लेकर अपनी शिकायत करने कोलकाता स्थित राज्य चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचे तो कार्यालय के कर्मचारियों ने मुख्य द्वार पर ताला लगा दिया और उन्हें दफ्तर में प्रवेश नहीं करने दिया।
राज्य में मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने हिंसा प्रभावित संवेदनशील इलाकों में केंद्रीय बलों की तैनाती नहीं की और वहां पर राज्य पुलिस हिंसा रोकने में नाकाम रही। बंगाल भाजपा प्रमुख सुकांत मजूमदार ने इस घटना के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र भेजकर केंद्रीय हस्तक्षेप की मांग की है। मजूमदार ने कहा कि राज्य चुनाव आयोग के प्रमुख राजीव सिन्हा ने अपने पद की गरिमा के खिलाफ जाकर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के एजेंट के तौर पर काम किया है।
उन्होंने पत्र में लिखा है, “संवेदनशील बूथों पर बहुत कम केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती की गई थी, उन जगहों पर जहां हिंसा हुई, ज्यादा संख्या में राज्य पुलिस कर्मी और नागरिक स्वयंसेवकों की तैनाती की गई थी। राज्य सरकार ने सीधे तौर पर कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया है और राज्य चुनाव आयोग ने केंद्रीय बलों की तैनाती पर कहीं कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी थी।”
वहीं हिंसा के आरोपों पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने पलटवार करते हुए कहा कि विपक्षी दल ने केंद्रीय सुरक्षा बलों की मदद से मतदाताओं को दल विशेष के पक्ष में वोट देने के लिए दबाव डाला, जिसके कारण हिंसा हुआ। राज्य की महिला और बाल विकास मंत्री शशि पांजा ने कहा, “ये हिंसा विपक्ष की मिलीभगत का परिणाम है। वो और ज्यादा केंद्रीय बलों की मांग कर रहे थे। आखिर वो ताकतें हिंसा के वक्त कहां थीं? आखिर वो नागरिकों सुरक्षा में कैसे विफल हो गये? जिन्हें शांति का प्रहरी कहा जाता है, भला वो कैसे लड़खड़ा गए और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहे हैं।”
इसके साथ तृणमूल ने यह भी कहा कि पंचायत चुनाव के कुल 62,000 मतदान केंद्रों में से आठ से नौ बूथों पर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। तृणमूल प्रवक्ता कुणाल घोष के अनुसार लगभग 60 बूथों पर मामूली झड़प के साथ हिंसक घटनाएं हुईं।
वहीं पंचायत चुनाव में तैनात बीएसएफ के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “स्वतंत्र और निष्पक्ष पंचाय़त चुनाव सुनिश्चित करने के लिए शनिवार तक राज्य में लगभग 61,290 केंद्रीय बल के जवानों को तैनात किया गया था। इन्हें संवेदनशील बूथों और मतदान केंद्रों पर तैनात किया गया था। जिन क्षेत्रों में केंद्रीय सैनिक तैनात थे, वहां किसी भी प्रकार ही हिंसा नहीं हुई।”
खबरों के अनुसार पश्चिम बंगाल को शनिवार तक केंद्रीय बलों की 681 कंपनियां मिलीं थी। विपक्षी दलों का आरोप है कि राज्य चुनाव ने हिंसा को रोकने के लिए इन्हें सही स्थानों पर तैनात नहीं किया था।