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दिल्ली के ‘रेड लाइट’ एरियाः वोटर आईडी कार्ड है, वोट भी देते है लेकिन किसी राजनीतिक पार्टी से कोई उम्मीद नहीं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 2, 2019 16:54 IST

रोमा ने कहा, ‘‘हमारे पेशे को कानूनी जामा पहना देना चाहिए। एक बार महिला की उम्र निकल जाती है तो उसे ग्राहक नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाओं के लिए पेंशन या उम्र ढलने पर उनके लायक किसी रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वे अपनी बाकी की जिंदगी ठीक से गुजार सकें। सरकार उनकी जिंदगी बेहतर बनाने के लिए काफी कुछ कर सकती है।

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ठळक मुद्देजी बी रोड: देह व्यापार में शामिल महिलाओं को राजनीतिक दलों से कोई उम्मीद नहींसरकार उनकी जिंदगी बेहतर बनाने के लिए काफी कुछ कर सकती है।

देश का बड़ा तबका भले ही हर पांच साल पर होने वाले लोकसभा चुनावों की तरफ बड़ी उम्मीदों से देखता हो, लेकिन दिल्ली के ‘रेड लाइट’ एरिया के नाम से कुख्यात जी बी रोड में देह व्यापार में शामिल महिलाओं का शायद इस लोकतांत्रिक कवायद से मोहभंग हो चुका है।

इन महिलाओं का कहना है कि उन्हें हर पांच साल पर उनके दरवाजे खटखटाने वाली किसी राजनीतिक पार्टी से कोई उम्मीद नहीं है। हालांकि, जी बी रोड के कोठों के तंग कमरों में रहने को मजबूर महिलाएं यह भी कहती हैं कि उन्हें अपने वोट की अहमियत पता है। इनमें से कुछ महिलाओं ने तो पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में अपने घर जाकर अपना वोट भी डाला है। दिल्ली के इस ‘बदनाम’ इलाके में रहने वाली कई महिलाओं ने बताया कि उनके पास वोटर आईडी कार्ड है, लेकिन वे किसी को भी वोट डालें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

उनके लिए यह वोटर आईडी कार्ड सशक्तिकरण का प्रतीक मात्र है। पहली मंजिल पर बने एक कोठे में रहने वाली संगीता ने बताया, ‘‘हमें किसी राजनीतिक पार्टी से कोई उम्मीद नहीं है। साल 2014 के लोकसभा चुनावों में मैंने एक पार्टी को वोट दिया था। इस चुनाव में मैं किसी और पार्टी को वोट दूंगी, लेकिन मुझे उनसे भी कोई उम्मीद नहीं है।’’ करीब 35-40 साल की उम्र की संगीता 17 साल पहले देह-व्यापार में आई थीं।

उन्होंने पहली बार मतदान करीब नौ साल पहले किया था। आगरा में रहने वाले संगीता के परिवार की ज्यादातर महिलाएं देह-व्यापार में हैं और उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं है। संगीता की बहन शबनम कहती हैं, ‘‘यदि हम वोट नहीं करेंगे तो हमें इस देश के नागरिक के तौर पर पहचाना कैसे जाएगा। हम जो करना चाहते हैं, वह करते हैं। कोई हम पर सवाल नहीं उठा सकता।’’

कई महिलाओं ने कहा कि हालात ने उन्हें देह-व्यापार करने को मजबूर कर दिया

संगीता और शबनम के बगल के कोठे में रहने वाली महिलाएं थोड़ी आक्रोशित नजर आईं। कई महिलाओं ने कहा कि हालात ने उन्हें देह-व्यापार करने को मजबूर कर दिया है। वजहें अलग-अलग हैं, लेकिन कहानियां कमोबेश एक जैसी हैं। कुछ ने कहा कि उन्हें उनके पति ने छोड़ दिया, जबकि कुछ अन्य ने कहा कि विधवा होने पर उनके परिवार ने उन्हें खुद से अलग कर दिया, जबकि कुछ महिलाओं ने बताया कि गरीबी के बोझ से दबे उनके परिवार ने उन्हें देह-व्यापार के लिए मजबूर कर दिया।

हालांकि, इन परिस्थितियों के बावजूद वे मौजूदा चुनावों और नेताओं एवं सरकारों की बेरुखी को नहीं भूली हैं। उन्होंने नोटबंदी, दरवाजे पर कूड़े के अंबार से लेकर देह-व्यापार को कानूनी जामा पहनाने और पेंशन की व्यवस्था पर भी बातें की। कुछ महिलाओं ने बताया कि नोटबंदी से उन्हें काफी नुकसान हुआ और वे अब भी इसकी मार झेल रही हैं।

पूजा ने बताया, ‘‘मोदी सरकार में हमें बहुत नुकसान हुआ। नोटबंदी के बाद हमें करीब तीन महीने तक लगभग भूखा रहना पड़ा। हमें एक ग्राहक से 250-500 रुपए मिलते हैं। उन दिनों, हमारे ग्राहक अमान्य करार दिए जा चुके 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों के साथ आते थे। हम उन नोटों को ले नहीं सकते थे, क्योंकि हमारे पास बैंक खाते नहीं थे।’’

पूजा की करीब 50 वर्षीय दोस्त रोमा ने कहा, ‘‘हमारे पेशे को कानूनी जामा पहना देना चाहिए। एक बार महिला की उम्र निकल जाती है तो उसे ग्राहक नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि ऐसी महिलाओं के लिए पेंशन या उम्र ढलने पर उनके लायक किसी रोजगार की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वे अपनी बाकी की जिंदगी ठीक से गुजार सकें।

सरकार उनकी जिंदगी बेहतर बनाने के लिए काफी कुछ कर सकती है। रोमा ने कहा, ‘‘सरकार को हमारे लिए आश्रय गृह बनाने पर विचार करना चाहिए या कोई ऐसा कानून लाना चाहिए जिसमें पुनर्वास, पेंशन व्यवस्था, हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने और हमारे काम के घंटे परिभाषित करने के प्रावधान हों।’’ 

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