कांग्रेस को ‘पंजा’ दिलाने में भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह नहीं रहे

By भाषा | Published: January 2, 2021 05:31 PM2021-01-02T17:31:31+5:302021-01-02T17:31:31+5:30

Senior leader and former Home Minister Buta Singh who played a role in getting the Congress 'pawns' ceased | कांग्रेस को ‘पंजा’ दिलाने में भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह नहीं रहे

कांग्रेस को ‘पंजा’ दिलाने में भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह नहीं रहे

नयी दिल्ली, दो जनवरी इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस संगठन व सरकार में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल चुके तथा पार्टी के लिए ‘हाथ का पंजा’ चुनाव चिन्ह चुनने में अहम भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ नेता बूटा सिंह का शनिवार को निधन हो गया। वह 86 साल के थे।

पिछले साल मस्तिष्काघात के बाद उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था और वह गत वर्ष अक्टूबर महीने से कोमा में थे।

उनके परिवार ने बताया कि बूटा सिंह ने शनिवार को सात बज कर करीब दस मिनट एम्स में निधन अंतिम सांस ली।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कई अन्य नेताओं ने बूटा सिंह के निधन पर दुख जताया और उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की।

बूटा सिंह ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में केंद्रीय गृह मंत्री, रेल मंत्री, कृषि मंत्री समेत कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं। इसके साथ ही वह बिहार के राज्यपाल और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष भी रहे। वह आठ बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।

पंजाब के जालंधर में 21 मार्च, 1934 को पैदा हुए बूटा सिंह साल 1962 में पहली बार लोकसभा पहुंचे। बूटा सिंह ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ सरकार और संगठन में काम किया तो सोनिया गांधी की अगुवाई में उन्होंने संगठन और बाद में संप्रग सरकार के दौरान संवैधानिक पदों पर काम किया।

वह 1960, 1970 और 1980 के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबियों में शुमार किए जाते रहे। वह राजीव गांधी के भी बेहद करीबी माने जाते थे तथा नरसिंह राव से भी अच्छे रिश्ते थे।

उन पर इंदिरा गांधी के विश्वास का अंदाजा इस बात पर से लगाया जा सकता है कि 1978 में जब इंदिरा ने कांग्रेस (आई) बनाई तो नए चुनाव चिन्ह का चयन करने के लिए पीवी नरसिंह राव और बूटा पर भरोसा जताया।

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई की पुस्तक ‘बैलट: टेन एपिसोड्स दैट हैव शेप्ड इंडियाज डेमोक्रेसी में इसका उल्लेख किया गया है कि ‘हाथ का पंजा’ चुनाव चिन्ह के चयन करने में बूटा सिंह की प्रमुख भूमिका थी।

इसी पुस्तक के मुताबिक, चुनाव आयोग ने उस वक्त कांग्रेस (आई) को तीन चुनाव चिन्हों- हाथी, साइकिल और हाथ का पंजा, में से किसी एक चुनने का विकल्प दिया। इसके बाद बूटा सिंह ने इंदिरा गांधी को फोन किया और उनके बोलने की शैली के कारण इंदिरा को लगा कि बूटा सिंह उन्हें ‘हाथी’ चुनाव चिन्ह चुनने के लिए कह कह रहे हैं, हालांकि वह ‘हाथ’ की बात कर रहे थे। बाद में हाथ के पंजे का चयन हुआ और इसके बाद से यह कांग्रेस का चुनाव निशान है।

राजनीतिक जीवन में लंबे समय तक कई ऊंचाइयों को छूने वाले बूटा सिंह को 2005 में बिहार के राज्यपाल के तौर पर विधानसभा भंग करने की अनुशंसा से जुड़े अपने फैसले को लेकर विवादों का सामना करना पड़ा। फरवरी, 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, हालांकि नीतीश कुमार के नेतृत्व उस वक्त राजग ने सरकार बनाने का दावा किया। लेकिन बूटा सिंह ने राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा कर दी। इसके छह महीने बाद हुए चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग को बहुमत मिला।

बूटा सिंह कुछ साल पहले कांग्रेस से अलग भी हो गए थे। उनके पुत्र अरविंद सिंह दिल्ली विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं।

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