वरिष्ठ लेखक कृष्ण बलदेव वैद का 92 साल की उम्र में निधन

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 7, 2020 12:44 IST2020-02-06T19:00:27+5:302020-02-07T12:44:32+5:30

अपनी रचनाओं में कृष्ण बलदेव वैद ने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किये हैं जो पाठक को 'चमत्कृत' करने के अलावा हिन्दी के आधुनिक-लेखन में एक खास शैली के मौलिक-आविष्कार की दृष्टि से विशेष अर्थपूर्ण हैं।

Senior Hindi writer Krishna Baldev Vaid dies at the age of 92 | वरिष्ठ लेखक कृष्ण बलदेव वैद का 92 साल की उम्र में निधन

कृष्ण बलदेव वैद का जन्म 27 जुलाई, 1927 पंजाब के दिंगा में हुआ था। (Photo Courtesy: Penguin Books)

Highlightsहार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की और अपनी लेखनी से कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है। हिन्दी के आधुनिक-लेखन में एक खास शैली के मौलिक-आविष्कार की दृष्टि से विशेष अर्थपूर्ण हैं।

हिन्दी के आधुनिक गद्य-साहित्य में सब से महत्वपूर्ण लेखकों में गिने जाने वाले कृष्ण बलदेव वैद का निधन हो गया है। 27 जुलाई, 1927 पंजाब के दिंगा में जन्मे वैद ने अंग्रेजी से स्नातकोत्तर और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की और अपनी लेखनी से कई पीढ़ियों को प्रभावित किया है। 

कृष्ण बलदेव वैद की लेखनी में मनुष्य जीवन के नाटकीय सन्दर्भों की गहरी पहचान है। वैद को साहित्य अकेडमी अवार्ड से नवाजा गया। अपनी रचनाओं में उन्होंने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किये हैं जो पाठक को 'चमत्कृत' करने के अलावा हिन्दी के आधुनिक-लेखन में एक खास शैली के मौलिक-आविष्कार की दृष्टि से विशेष अर्थपूर्ण हैं।

वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद का अमेरिका के न्यूयार्क में 92 साल की उम्र में निधन हो गया। साहित्यिक जगत से जुड़े सूत्रों ने बताया कि उन्होंने आज सुबह न्यूयार्क में अंतिम सांस ली। हिन्दी के आधुनिक गद्य-साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण लेखकों में गिने जाने वाले कृष्ण बलदेव वैद का निधन हो गया।

27 जुलाई, 1927 पंजाब के दिंगा में जन्मे वैद ने अंग्रेजी से स्नातकोत्तर और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की और अपनी लेखनी से कई पीढ़ियों को प्रभावित किया । कृष्ण बलदेव वैद की लेखनी में मनुष्य जीवन के नाटकीय सन्दर्भों की गहरी पहचान है। वैद को साहित्य अकेडमी अवार्ड से नवाजा गया।

अपनी रचनाओं में उन्होंने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किये हैं जो पाठक को 'चमत्कृत' करने के अलावा हिन्दी के आधुनिक-लेखन में एक खास शैली के मौलिक-आविष्कार की दृष्टि से विशेष अर्थपूर्ण हैं। ‘उसका बचपन’, ‘बिमल उर्फ़ जायें तो जायें कहां’, ‘तसरीन’, ‘दूसरा न कोई’, ‘दर्द ला दवा’, ‘गुज़रा हुआ ज़माना’, ‘काला कोलाज’, ‘नर नारी’, ‘माया लोक’, ‘एक नौकरानी की डायरी’ जैसे उपन्यासों से उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई।

दक्षिण दिल्ली के 'वसंत कुंज' के निवासी वैद लम्बे अरसे से अमेरिका में अपनी दो विवाहित बेटियों के साथ रह रहे थे । उनकी लेखिका पत्नी चंपा वैद का कुछ बरस पहले ही निधन हुआ था | कृष्ण बलदेव वैद अपने दो कालजयी उपन्यासों- ‘उसका बचपन’ और ‘विमल उर्फ़ जाएँ तो जाएँ’ कहाँ के लिए सर्वाधिक चर्चित हुए हैं। एक मुलाक़ात में उन्होंने कहा था- "साहित्य में डलनेस को बहुत महत्व दिया जाता है। भारी-भरकम और गंभीरता को महत्व दिया जाता है।

आलम यह है कि भीगी-भीगी तान और भिंची-भिंची सी मुस्कान पसंद की जाती है। और यह भी कि हिन्दी में अब भी शिल्प को शक की निगाह से देखा जाता है। उन्होंने कहा था, ‘‘बिमल उर्फ जाएँ तो जाएँ कहाँ’’ को अश्लील कहकर खारिज किया गया।

मुझ पर विदेशी लेखकों की नकल का आरोप लगाया गया, लेकिन मैं अपनी अवहेलना या किसी बहसबाजी में नहीं पड़ा। अब मैं 82 का हो गया हूँ और बतौर लेखक मैं मानता हूँ कि मेरा कोई नुकसान नहीं कर सका। जैसा लिखना चाहता, वैसा लिखा। जैसे प्रयोग करना चाहे किए।" वरिष्ठ लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कृष्ण बलदेव वैद को श्रद्धांजलि देते हुए कहा,‘‘ आज भीतर कोई किनारा सा मानो ढह गया। उन्हें पढ़ना बहुत कुव्वत मांगता था।’’

अनेक रचनाओं के अनुवाद बंगला, उर्दू, गुजराती, तमिल, मलयाली, मराठी आदि अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी के अलावा जर्मन, इतालवी, हिस्पानवी, फ्रांसीसी, नार्विजियन, स्वीडिश और पोलिश में प्रकाशित हो चुके हैं।

उनका लिखा उपन्यास 'एक नौकरानी की डायरी' शहरी जीवन के उस उपेक्षित तबके पर केन्द्रित है जिसकी समस्याओं पर हम संवेदनशील तरीके से कभी बात नहीं करते मगर जिसके बिना हमारा काम भी नहीं चल पाता।

शहरी घरों में रसोई, बच्चों की देखभाल और सफाई इत्यादि करनेवाली नौकरानियों की रोजमर्रा की जिन्दगी और उनकी मानसिकता इसका केन्द्रीय विषय है। एक युवा होती नौकरानी की मानसिक उथल–पुथल को वैद्य जी ने इस उपन्यास में बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया है।

डायरी शैली में लिखे इस उपन्यास के माध्यम से वैद्य ने बड़ी कुशलता पूर्वक से इस उपेक्षित वर्ग के साथ-साथ हमारे कुलीन समाज की विडम्बना को भी पहचानने–परखने का अवसर दिया है। उपन्यास की नायिका शानो हिंदी साहित्य का वह चरित्र है जिसे पाठक हमेशा याद रखेंगे।

कवि और लेखक दुष्यंत ने कृष्ण बलदेव वैद को श्रद्धांजलि देते हुए फेसबुक पर लिखा, "कृष्ण बलदेव वैद मेरे लिए 'बॉस लेखक' थे, इस मायने में कि भाषा, कथ्य और जीवन तीनों में हिंदी के विरले लेखक। उनके समकालीन होने से प्रेरणा, ईर्ष्या और गर्व तीनों की अनुभूति होती थी।"

प्रमुख रचनाएं

उसका बचपन

बिमल उर्फ़ जायें तो जायें कहां

तसरीन

दूसरा न कोई

दर्द ला दवा

गुज़रा हुआ ज़माना

काला कोलाज

नर नारी

माया लोक

Web Title: Senior Hindi writer Krishna Baldev Vaid dies at the age of 92

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