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दागी छवि के प्रत्याशियों को टिकट देने से राजनीतिक दलों को रोकने के लिये SC में याचिका

By भाषा | Updated: January 28, 2020 17:47 IST

सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर अपने सारे प्रत्याशियों का सारा विवरण पोस्ट करें और आपराधिक विवरण तीन सबसे अधिक देखे जाने वाले समाचार चैनलों पर सुबह नौ से रात नौ बजे के दौरान कम से कम तीन बार प्रसारित करें और तीन सर्वाधिक प्रसार वाले प्रमुख समाचार पत्रों मतदान की तारीख से दो दिन पहले प्रकाशित करें।

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ठळक मुद्देराजनीतिक दलों को चुनाव में ऐसे प्रत्याशियों को टिकट देने से रोकने का निर्देश दियाराजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर अपने सारे प्रत्याशियों का सारा विवरण पोस्ट करें

उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर अनुरोध किया गया है कि राजनीतिक दलों को चुनाव में ऐसे प्रत्याशियों को टिकट देने से रोकने का निर्देश दिया जाये जिनके खिलाफ गंभीर अपराध के मामले में आरोप निर्धारित हो चुके हैं। याचिका में कहा गया है कि अपराधियों को चुनाव लड़ने और जनप्रतिनिधि बनने की इजाजत देना लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है।

इस जनहित याचिका में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर अपने सारे प्रत्याशियों का सारा विवरण पोस्ट करें और आपराधिक विवरण तीन सबसे अधिक देखे जाने वाले समाचार चैनलों पर सुबह नौ से रात नौ बजे के दौरान कम से कम तीन बार प्रसारित करें और तीन सर्वाधिक प्रसार वाले प्रमुख समाचार पत्रों मतदान की तारीख से दो दिन पहले प्रकाशित करें।

यह याचिका भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने वकील अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर की है। इसमें दलील दी गयी है कि एक व्यक्ति जिसके खिलाफ आरोप निर्धारित हो गये हों, डाक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकता किन्तु वह जनप्रतिनिधि बन सकता है।

उन्होने चुनाव चिन्ह (आवंटन) आदेश 1968 में पैराग्राफ 6ए, 6बी और 6सी में अतिरिक्त शर्त जोड़ी जाये कि राजनीतिक दल आपराधिक पृष्ठभूमि वाला प्रत्याशी खड़ा नहीं करेंगे इसी तरह चुनाव चिन्ह (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश के पैराग्राफ दो में आपराधिक पृष्ठभूमि का अर्थ परिभाषित किया कि ऐसा व्यक्ति जिसके खिलाफ नामांकन पत्रों की जांच की तारीख से कम से कम एक साल पहले किसी ऐसे अपराध के लिये आरोप निर्धारित हुआ है जिसमें पांच साल या इससे अधिक की सजा का प्रावधान है।

याचिका में कहा गया है कि यदि इस तरह का निर्देश दिया गया तो निर्वाचन आयोग के लिए भी जांच की जरूरत नहीं होगी क्योंकि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 33ए और निर्वाचन कराने संबंधी नियमों के नियम 4ए के तहत प्रत्याशियों को नामांकन पत्र के साथ फार्म 26 और हफनामा देना होता है जिसमे आरोप निर्धारित किये जाने के बारे में भी जानकारी देनी होगी। 

टॅग्स :सुप्रीम कोर्ट
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