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सवर्ण आरक्षण का सभी राज्यों में अलग-अलग होगा असर, लेकिन राजस्थान का ये रहेगा हाल

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: January 10, 2019 14:41 IST

राजनीतिक जानकार राजस्थान में इसका मिलाजुला असर रहने की संभावना व्यक्त कर रहे हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले इसका कोई सीधा-सीधा लाभ बेरोजगारों को नहीं मिलना है. इसकी आर्थिक सीमाओं को लेकर भी सवाल हैं कि- क्या वास्तव में सवर्ण गरीबों को इसका लाभ मिल पाएगा?

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सवर्णों को आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण को लोकसभा और राज्यसभा, दोनों से हरी झंडी मिल गई है, लेकिन इसके असर को लेकर कोई एक तरफा सियासी सोच सामने नहीं आ रही है. इससे भाजपा को फायदा होगा या नुकसान? 

इसको लेकर दो तथ्य उभर कर सामने आ रहे हैं, एक- भाजपा को एक फायदा यह होगा कि उसके समर्थकों के पास आम चर्चा में बोलने के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं था, सवर्ण आरक्षण उन्हें बोलने की ताकत देगा, जिससे नाराज सवर्णों को मनाने में मदद मिल सकती है, दो- युवा वर्ग जागरूक है, इसलिए सवर्ण आरक्षण को लेकर युवाओं की प्रतिक्रिया भाजपा के लिए उत्साहजनक नहीं है, युवा इसे चुनावी सियासी निर्णय के तौर पर तो देख ही रहे हैं, यह भी हिसाब लगा रहे हैं कि क्या वास्तव में इससे उनको लाभ होगा या नहीं।

राजनीतिक जानकार राजस्थान में इसका मिलाजुला असर रहने की संभावना व्यक्त कर रहे हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले इसका कोई सीधा-सीधा लाभ बेरोजगारों को नहीं मिलना है. इसकी आर्थिक सीमाओं को लेकर भी सवाल हैं कि- क्या वास्तव में सवर्ण गरीबों को इसका लाभ मिल पाएगा?

राजस्थान ब्राह्मण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष और प्रमुख कांग्रेस नेता पं. भंवरलाल शर्मा तो लंबे समय से आर्थिक आधार पर आरक्षण को लेकर अभियान चला रहे थे और कांग्रेस ने लोकसभा और राज्यसभा में सवर्ण आरक्षण का समर्थन किया है, इसलिए बतौर सियासी हथियार भाजपा इस फैसले का राजस्थान में कोई बड़ा लाभ नहीं ले पाएगी. यही नहीं, एससी-एसटी एक्ट में संशोधन, पद्मावत फिल्म जैसे मुद्दों से उपजी सामान्य वर्ग की नाराजगी, इससे दूर हो पाएगी, इसकी संभावना कम ही हैं.

सवर्ण आरक्षण का असर विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग होने की संभावना है, क्योंकि एक तो हर राज्य में सवर्ण जातियों की जनसंख्या अलग-अलग हैं और दूसरा प्रत्येक प्रदेश में सामान्य वर्ग का सामाजिक-आर्थिक स्तर और सोच अलग-अलग हैं.

आरक्षण को लेकर सबसे ज्यादा उलझी हुई तस्वीर पीएम मोदी के गृह-प्रदेश गुजरात में ही है. आरक्षण का मुद्दा चलते ही गुजरात में पिछले विस चुनाव में बामुश्किल भाजपा, अपनी प्रदेश सरकार बचा पाई थी. सवर्ण आरक्षण को गुजरात के मतदाता किस नजरिए से देखते हैं।

यह लोकसभा चुनाव के नतीजों में ही साफ होगा, लेकिन गुजरात के हार्दिक पटेल, प्रवीणभाई तोगड़िया आदि नेता मुद्दों के आधार पर कम, पीएम मोदी के व्यक्तिगत सियासी तौर-तरीकों के आधार पर ज्यादा विरोध में हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में गुजरात में भाजपा ने 26 में से 26 सीटें जीत लीं थीं, परन्तु गुजरात विस चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो इस बार 15 से ज्यादा सीटें जीतना भाजपा के लिए आसान नहीं है.

वैसे देश के विभिन्न प्रदेशों में सामान्य वर्ग की जनसंख्या का कोई अधिकृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवेलपिंग सोसाइटी के सर्वे के अनुसार देश के विभिन्न राज्यों में सवर्ण जातियों की जनसंख्या 20 से 30 प्रतिशत के बीच है. उत्तर भारत में ज्यादातर सवर्ण पहले से ही भाजपा के साथ खड़े हैं, इसलिए सवर्ण आरक्षण से भाजपा को कोई नया फायदा नहीं होगा, लेकिन नाराज पुराने भाजपा समर्थकों को मनाने में शायद भाजपा कामयाब हो जाए।

टॅग्स :सवर्ण आरक्षणराजस्थान
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