CBI निदेशक पद से हटाए गए आलोक वर्मा ने नौकरी को कहा अलविदा, दिया इस्तीफा
By रामदीप मिश्रा | Published: January 11, 2019 03:42 PM2019-01-11T15:42:09+5:302019-01-11T15:44:47+5:30
बीते दिन 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी आलोक वर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की मैराथन बैठक के बाद सीबीआई निदेशक पद से हटाया गया था।
उच्चस्तरीय चयन समिति द्वारा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) निदेशक के पद से हटाए जाने के बाद आलोक वर्मा को गुरुवार (10 जनवरी) को अग्निशमन विभाग, नागरिक सुरक्षा और होम गार्ड्स का निदेशक नियुक्त किया गया था, जिसके बाद उन्होंने शुक्रवार को आलोक वर्मा ने फायर डिपार्टमेंट के डीजी का पद संभालने से साफ इनकार कर दिया है। उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
आपको बता दें, बीते दिन 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी आलोक वर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति की मैराथन बैठक के बाद सीबीआई निदेशक पद से हटाया गया था।
बैठक में पीएम मोदी लोकसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और जस्टिस एके सीकरी शामिल थे। अधिकारियों ने बताया कि वर्मा को भ्रष्टाचार और कर्तव्य निर्वहन में लापरवाही के आरोप में पद से हटाया गया। इसके साथ ही एजेंसी के इतिहास में इस तरह की कार्रवई का सामना करने वाले वह सीबीआई के पहले प्रमुख बन गए।
इससे पहले जबरन छुट्टी पर भेजे जाने के 77 दिन बाद वर्मा बुधवार को अपनी ड्यूटी पर लौटे थे। एजीएमयूटी काडर के आईपीएस अधिकारी वर्मा बुधवार को सुबह करीब दस बजकर 40 मिनट पर सीबीआई मुख्यालय पहुंचे। उच्चतम न्यायालय ने वर्मा को छुट्टी पर भेजने के विवादास्पद सरकारी आदेश को मंगलवार को रद्द कर दिया था।
वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना दोनों को सरकार ने 23 अक्टूबर, 2018 की देर शाम जबरन छुट्टी पर भेज दिया था और उनके सारे अधिकार ले लिये थे। अधिकारियों के अनुसार सीबीआई मुख्यालय पहुंचने पर वर्मा का राव ने स्वागत किया।
1986 बैच के ओड़िशा काडर के आईपीएस अधिकारी एम नागेश्वर राव (तत्कालीन संयुक्त निदेशक) को 23 अक्टूबर, 2018 को देर रात को सीबीआई निदेशक के दायित्व और कार्य सौंपे गये थे। उन्हें बाद में अतिरिक्त निदेशक के रुप में प्रोन्नत किया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेजे जाने के आदेश को दरकिनार कर दिया था, लेकिन उन्हें उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की सीवीसी जांच पूरी होने तक कोई बड़ा नीतिगत निर्णय लेने से रोक दिया था।