2015 में केरल विस में हंगामा: न्यायालय ने एलडीएफ विधायकों के खिलाफ मामले वापस लेने की अपील खारिज की

By भाषा | Published: July 28, 2021 02:42 PM2021-07-28T14:42:59+5:302021-07-28T14:42:59+5:30

Ruckus in Kerala Vis 2015: Court dismisses appeal against LDF MLAs to withdraw cases | 2015 में केरल विस में हंगामा: न्यायालय ने एलडीएफ विधायकों के खिलाफ मामले वापस लेने की अपील खारिज की

2015 में केरल विस में हंगामा: न्यायालय ने एलडीएफ विधायकों के खिलाफ मामले वापस लेने की अपील खारिज की

नयी दिल्ली, 28 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने 2015 में केरल विधान सभा में हुए हंगामे के सिलसिले में एलडीएफ के कुछ विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने के लिये केरल सरकार की अपील बुधवार को खारिज कर दी। इस अपील में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले वापस लेने की राज्य सरकार की याचिका खारिज करने के उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अभियोग वापस लेने की अनुमति देना ‘‘अवैध कारणों’’ से न्याय की सामान्य प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना होगा।

न्यायालय ने कहा कि सार्वजनिक संपत्ति नष्ट करने के कृत्यों की विधायकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या विपक्ष के सदस्यों को वैध रूप से उपलब्ध विरोध के तरीकों से तुलना नहीं की जा सकती।

न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा, ‘‘विशेषाधिकार और छूट देश के सामान्य कानून, विशेष रूप से आपराधिक कानून, के इस मामले में छूट का दावा करने का तरीका नहीं हैं। यह कानून हर नागरिक के कदम को नियंत्रित करता है।’’

पीठ ने केरल सरकार की याचिका समेत वे याचिकाएं खारिज कर दीं। इनमें केरल विधानसभा में हंगामा करने के संबंध में एलडीएफ विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले वापस लेने की याचिका खारिज करने के उच्च न्यायालय के 12 मार्च के आदेश को चुनौती दी गई थी।

विधानसभा में 2015 को उस समय अप्रत्याशित घटना हुई थी, जब उस समय विपक्ष की भूमिका निभा रहे एलडीएफ के सदस्यों ने तत्कालीन वित्त मंत्री के एम मणि को राज्य का बजट पेश करने से रोकने की कोशिश की थी। मणि बार रिश्वत घोटाले में आरोपों का सामना कर रहे थे।

तत्कालीन एलडीएफ सदस्यों ने अध्यक्ष की कुर्सी को उनके आसन से फेंकने के साथ ही पीठासीन अधिकारी की मेज पर लगे कंप्यूटर, की-बोर्ड और माइक जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को भी कथित रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विधान मंडल के निर्वाचित सदस्यों को विशेषाधिकार और छूट प्रदान करने का उद्देश्य उन्हें बिना किसी बाधा, भय या पक्षपात के अपने कार्यों को करने में सक्षम बनाना है।

पीठ ने कहा, ‘‘अगर हम निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के कर्तव्यों के बजाय केवल अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम सबसे जरूरी चीज को नजरअंदाज करेंगे।’’ पीठ ने इस बात पर भी गौर किया कि लोक अभियोजक स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए बाध्य है।

पीठ ने कहा, ‘‘इन आरोपों के मामले में अभियोग वापस लेने की अनुमति देना न्याय की सामान्य प्रक्रिया में अवैध कारणों से हस्तक्षेप करना होगा। इन आरोपों की जांच के बाद आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत एक अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है और संज्ञान लिया गया है।’’

पीठ ने कहा कि अभियोग वापस लेने की अनुमति देने से केवल एक ही परिणाम निकलेगा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों को आपराधिक कानून के जनादेश से छूट प्राप्त है। शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर 15 जुलाई को सुनवाई पूरी करते हुये कहा था कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा।

राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा था कि यह घटना 2015 की है जब राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे और वित्त मंत्री सदन में बजट पेश करने वाले थे। उन्होंने कहा था कि विधायी सचिव द्वारा दर्ज करायी गयी प्राथमिकी का कोई संवैधानिक आधार नहीं है क्योंकि अध्यक्ष ने कोई मंजूरी नहीं दी थी और मामले को शांत करने के लिए वर्तमान सरकार ने मुकदमा वापस लेने के लिए एक आवेदन दिया है।

केरल सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में दायर अपनी याचिका में दावा किया था कि अदालत ने इस बात पर गौर नहीं किया कि कथित घटना उस समय हुई, जब विधानसभा का सत्र चल रहा था और अध्यक्ष की ‘‘पूर्व स्वीकृति के बिना’’ कोई मामला दर्ज नहीं किया जा सकता था।

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