सीबीआई को निर्वाचन आयोग की तर्ज पर स्वायत्त और सशक्त बनाने का सही वक्त: एस एम खान

By भाषा | Published: November 8, 2020 05:15 PM2020-11-08T17:15:09+5:302020-11-08T17:15:09+5:30

Right time to make CBI autonomous and empowered on the lines of Election Commission: SM Khan | सीबीआई को निर्वाचन आयोग की तर्ज पर स्वायत्त और सशक्त बनाने का सही वक्त: एस एम खान

सीबीआई को निर्वाचन आयोग की तर्ज पर स्वायत्त और सशक्त बनाने का सही वक्त: एस एम खान

(ब्रजेन्द्र नाथ सिंह)

नयी दिल्ली, आठ नवंबर राज्यों द्वारा मामलों की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को दी गई आम सहमति वापस लेने की ताजा घटनाओं की पृष्ठभूमि में सीबीआई मामलों के विशेषज्ञ एस एम खान का कहना है कि इस चलन पर रोक लगाने के लिए सीबीआई को वैधानिक शक्तियां प्रदान कर इसके दायरे को राष्ट्रव्यापी बनाए जाने की जरूरत है।

सीबीआई मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के प्रेस सचिव रह चुके एस एम खान ने रविवार को कहा निर्वाचन आयोग की तर्ज पर केंद्रीय जांच ब्यूरो को वैधानिक शक्तियां प्रदान कर उसे स्वायत्त स्वरूप देने का यह सही वक्त है क्योंकि केंद्र में सत्तासीन भाजपा के पास लोकसभा और राज्यसभा दोनों में बहुमत है और अधिकांश राज्यों में भी उसकी सरकारें हैं।

उल्लेखनीय है कि केरल, झारखंड और महाराष्ट्र की सरकारों ने हाल ही में सीबीआई को जांच के लिए दी गई आम सहमति वापस ले ली है। सीबीआई को लेकर आए दिन केंद्र व राज्य की सरकारों में टकराव भी देखा जाता रहा है क्योंकि सीबीआई ‘‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’’ द्वारा शासित है, जिसके तहत राज्यों में किसी मामले की जांच के लिए वहां की सरकार की सहमति अनिवार्य होती है।

पीटीआई-भाषा को दिए एक साक्षात्कार में सीबीआई के प्रमुख प्रवक्ता रहे खान ने कहा, ‘‘राज्यों द्वारा सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस लेना कोई नयी घटना नहीं है। जब से सीबीआई का गठन हुआ तभी से यह चला आ रहा है। पहले तो एक ही पार्टी की सरकारें रहा करती थीं। केंद्र और राज्यों में भी। सारी ही सरकारें सीबीआई को जांच की मंजूरी देती रहीं। इस प्रकार सीबीआई बिना रोकटोक के राज्यों में भी काम करती रही।’’

उन्होंने बताया कि बाद में परिस्थितियां बदलीं और गैर-कांग्रेसी सरकारें भी बनने लगीं और तभी से यह समस्या शुरू हुई और कुछ राज्यों ने सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले ली।

उन्होंने कहा, ‘‘समस्या है सीबीआई का कानून। सीबीआई, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (डीएसपीई एक्ट) के अधीन काम करती है। इसके तहत सीबीआई का दायरा दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेशों तक ही सीमित है।’’

उन्होंने कहा कि बाद में सीबीआई को विशेष अपराध के महत्वपूर्ण मामले भी सौंपे जाने लगें। फिर सीबीआई के पास आतंकवाद के मामले और फिर आर्थिक अपराध के मामले भी आने लगे। ऐसे मामलों में विवेकाधिकार राज्य सरकारों का होता है। या फिर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय हस्तक्षेप करते हुए किसी मामले को सीबीआई को सौंप दे तो वह उसकी जांच करती है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रकार के मामले राज्यों पर निर्भर होते हैं कि वह सीबीआई को सौंपा जाए या नहीं। इसी को लेकर विवाद होता है। इसके बाद केंद्र पर निर्भर है कि वह राज्य सरकार की संस्तुति को मंजूर करे या ना करे।’’

खान ने कहा कि सबसे बढ़िया ये हो सकता है कि ऐसा कानून बनाया जाए जो सीबीआई को पूरे भारत वर्ष में काम करने का अधिकार प्रदान करे।

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा कानून बनता है तो सीबीआई राज्य सरकारों के रहमो करम पर नहीं रहेगी। अपने कानून के तहत अपनी कार्रवाई करेगी। नहीं तो ये समस्या बरकरार रहेगी।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या राष्ट्रीय स्तर पर सीबीआई जांच के दायरे के विस्तार का यह सही वक्त है, खान ने कहा, ‘‘जी, हां। बिल्कुल होना चाहिए। ऐसे कानून की बहुत आवश्यकता है।’’

उन्होंने कहा कि इस समय केंद्र की सत्ता में जो पार्टी है, उसके पास संसद के दोनों सदनों में बहुत अच्छा बहुमत है और अधिकांश राज्यों में उसकी सरकारें भी हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता कि ऐसा संघीय कानून बने, जिसमें सीबीआई का कार्यक्षेत्र पूरे देश में निर्धारित किया जाए। कम से कम भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए सीबीआई को राष्ट्रीय स्तर पर अधिकार मिलने ही चाहिए। अभी तो भ्रष्टाचार के मामलों की भी पूरे देश में जांच करने का सीबीआई को कानूनी अधिकार नहीं है, जबकि उसकी स्थापना ही भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए हुई थी।’’

सीबीआई की विश्वसनीयता और उसकी साख को लेकर हमेशा उठने वाले सवालों को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ करार देते हुए खान ने दावा किया कि सीबीआई पहले भी निष्पक्ष ढंग से काम करती थी और आज भी करती है।

उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई की निष्पक्षता को लेकर एक धारणा बन गई है। हालांकि यह पहले भी थी लेकिन पहले कम थी, अब अधिक है। मैं अभी भी मानता हूं कि सीबीआई निष्पक्ष जांच करती है।’’

सीबीआई को समर्थ और सशक्त बनाने की जोरदार वकालत करते हुए खान ने कहा, ‘‘सीबीआई को निर्वाचन आयोग की तरह स्वतंत्र और स्वायत्त बनाना होगा। सीबीआई को बहुत सारी चीजों के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है, जैसे अनुरोध पत्र जारी करना, सीबीआई टीम को जांच के लिए विदेश जाने की अनुमति देना, उच्चतम और उच्च न्यायालयों में अपीलें फाइल करना जैसे अनेकों ऐसे मामले हैं। सरकार चाहे तो अनुमति दे या ना दे। चाहे तो देरी करे। इसका असर सीबीआई की साख पर पड़ता है। इसलिए यह धारणा बनती है।’’

उन्होंने इस बात पर असहमति जताई कि सीबीआई की दोष सिद्धि दर कम है। उन्होंने कहा कि आज भी यह पुलिस के मुकाबले बहुत बेहतर है।

उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई के पास मामले भी बहुत हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में दस्तावेजी साक्ष्य भी बहुत होते हैं। ऐसे में और अधिक विशेष अदालतों का गठन, विशेष अधिवक्ताओं का चयन करने की छूट होनी चाहिए। कुल मिलाकर सीबीआई को स्वायत्तता देनी होगी और उसे कानूनी रूप से और सशक्त बनाना होगा।

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