चेन्नई, 18 नवंबर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(आईआईटी), मद्रास के अनुसंधानकर्ताओं ने बृहस्पतिवार को दावा किया कि उन्होंने समुद्री जल को पेयजल में तब्दील करने के लिए अलवणीकरण तकनीक के तहत जल-प्रवाह में संभावित आणविक प्रक्रिया का पता लगाया है।
शोध दल ने प्रभावी अलवणीकरण झिल्लियां बनाने के लिए विशेष जैविक प्रणाली से प्रेरणा ली और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जल प्रौद्योगिकी पहल के तहत आइआईटी, मद्रास को अध्ययन करने का कार्य सौंपा गया था।
यहां एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘आस्ट्रेलिया की स्वीनबर्न यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी और नीदरलैंड की डेल्फ्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी की भागीदारी वाले अध्ययन के नतीजे अनूठे रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) प्रणाली का डिजाइन तैयार करने में उपयोगी है जो कार्बन नैनो ट्यूब आधारित झिल्लियों का उपयोग करती है।’’
उल्लेखनीय है कि विश्व भर के वैज्ञानिक समुदाय समुद्री जल का खारापन दूर कर उन्हें घरेलू व औद्योगिक उपयोग के लिए मीठे पानी में तब्दील करने के उपाय तलाश रहे हैं।
भारत में 7,000 किमी लंबे समुद्र तट होने के कारण समुद्री जल को जल संकट की कमी दूर करने का एक समाधान के तौर पर देखा जा रहा है।
आईआईटी-मद्रास के प्रोफेसर सरीथ पी साथियन के नेतृत्व में एक टीम बेहतर अलवणीकरण झिल्लियां विकसित करने पर काम कर रही है।
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