जाने-माने इतिहासकार और जामिया के पूर्व वाइस-चांसलर पद्मश्री मुशीरुल हसन का 71 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने सोमवार (10 दिसंबर) की सुबह अंतिम सांस ली। प्रोफेसर हसन आधुनिक भारत के अग्रणी अध्येताओं में शुमार किये जाते थे।
भारत-पाकिस्तान बंटवारे और साउथ-एशिया में इस्लाम के इतिहास पर उन्होंने उल्लेखनीय काम किया। 15 अगस्त 1949 को जन्मे मुशीरुल हसन को पद्मश्री समेत कई अवार्ड से सम्मानित किया गया है।
सोशल मीडिया पर प्रसारित संदेश के मुताबिक प्रो. मुशीरुल हसन के जनाजे की नमाज दोपहर 1 बजे जामिया मस्जिद में पढ़ी जाएगी। उनका अंतिम संस्कार आज शाम जामिया कब्रिस्तान में किया जाएगा।
उनके निधन पर दुख व्यवक्त करते हुए सीपीआई(एम) मुखिया सीताराम येचुरी ने कहा, 'एक इतिहासकार, एक अध्यापक, एक वाइस चॉन्सलर, एक ऑर्किविस्टः मुशीरुल हसन में संस्कृति और स्कॉलरशिप के सभी गुण थे। उनके काम और उनकी किताबें हमे रास्ता दिखाती रहेंगी।'
हसन के पिता मुहिब्बल हसन प्रसिद्ध इतिहासकार थे। मुशीरुल हसन ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इतिहास में एमए करने के बाद ब्रिटेन की मशहूर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी की।
भारत लौटने के बाद वो प्रोफेसर के तौर पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इतिहास विभाग से जुड़ गये। जामिया मिल्लिया में प्रोफेसर हसन विभिन्न पदों पर रहे। अकादमिक वर्ष 2004-05 में विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बनने से पहले वो इतिहास विभाग के प्रमुख, डीन और थर्ड वर्ल्ड स्टडीज सेंटर के डायरेक्टर के तौर पर अपनी सेवाएं दी थीं। जामिया मिल्लिया के वीसी रहने के दौरान प्रोफेसर हसन ने कई नए मल्टी-डिसिप्लिनरी सेंटरों की शुरुआत की।
जामिया से रिटायर होने के बाद मुशीरुल हसन को नेशनल आर्काइव्स (राष्ट्रीय अभिलेखागार) का निदेशक नियुक्त किया गया। प्रोफेसर हसन ने जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम अाजाद, अली बंधुओं पर उल्लेखनीय अकादमिक कार्य किये। ।
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी मुशीरुल हसन के निधन पर शोक जताते हुए श्रद्धांजलि दी है।