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ई-कचरे की आपदा से बचने के करने होंगे उपाय

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: September 1, 2018 04:54 IST

ई-कचरे के सुरक्षित निपटान के लिए शिक्षा और जागरूकता महत्वपूर्ण है। नागरिकों को इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है।

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डॉ. एस. एस. मंठा

दुनिया के सभी देशों में प्लास्टिक कचरा बहस के केंद्र में है। इसे रिसाइकिल या नष्ट करने के तरीकों के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। अनेक देशों सहित हमारे देश में भी कई राज्यों ने प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा रखा है। महाराष्ट्र सरकार ने इसी साल प्लास्टिक बैग्स, डिस्पोजेबल प्लास्टिक उत्पादों और थर्माकोल के निर्माण, उपयोग, बिक्री, परिवहन, वितरण तथा भंडारण पर प्रतिबंध लगा दिया। बहरहाल, क्या हमने कभी सोचा है कि जो इलेक्ट्रॉनिक कचरा हम फेंक देते हैं, उसका क्या होता है? ई-कचरे का अनौपचारिक प्रसंस्करण मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाता है। इलेक्ट्रॉनिक स्क्रैप कंपोनेंट, जैसे सीपीयू में सीसा, कैडमियम, बेरीलियम या ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेट जैसे स्वास्थ्य के लिए बहुत से हानिकारक तत्व होते हैं इसलिए ई-वेस्ट की रिसाइक्लिंग या डिस्पोजल का काम श्रमिकों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जोखिम भरा होता है और इससे बचने के लिए इसमें अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है, क्योंकि उक्त हानिकारक तत्व कैंसरकारी भी होते हैं।

इलेक्ट्रिॉनिक वेस्ट या ई-वेस्ट में खराब हो चुके इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे फ्रिज, वाशिंग मशीन, कम्प्यूटर, प्रिंटर, टेलीविजन, मोबाइल, आईपॉड इत्यादि आते हैं। किसी भी पुराने इलेक्ट्रॉनिक सामान की पुनर्बिक्री, रिसाइक्लिंग या डिस्पोजल भी ई-वेस्ट की श्रेणी में आते हैं और वे दुनिया में तेजी से बढ़ती कचरे की समस्या को और बढ़ाते हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय द्वारा जारी की गई नई ई-वेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक कचरा रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया है। पिछले चार वर्षो में 41।8 मिलियन टन ई-वेस्ट पैदा हुआ है और जिस खतरनाक दर से यह बढ़ रहा है उससे इसके 2018 के अंत तक 50 मिलियन टन तक पहुंंच जाने की आशंका है। इसने सार्वजनिक स्वास्थ्य, संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरण को पैदा होने वाले खतरों को बढ़ाया है। यह प्रति सेकंड 800 लैपटॉप को फेंकने के बराबर है। कुल ई-कचरे का लगभग एक चौथाई या 9।3 मिलियन टन कम्प्यूटर, डिस्प्ले,  स्मार्टफोन, टैबलेट और टीवी जैसे उपकरणों से पैदा होता है। घरेलू उपकरणों के साथ-साथ हीटिंग और कूलिंग उपकरणों का भी बाकी हिस्से में योगदान है। भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा ई-कचरा पैदा करने वाला देश है, जहां दो मिलियन टन ई-कचरा प्रतिवर्ष पैदा होता है। दुनिया में जहां सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की कंपनियों की इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट में 75 प्रतिशत हिस्सेदारी है, वहीं इसमें लोगों का व्यक्तिगत तौर पर योगदान केवल 16 प्रतिशत ही है। 

95 प्रतिशत से ज्यादा ई-वेस्ट का परिशोधन और प्रसंस्करण देश के शहरी इलाकों की मलिन बस्तियों में होता है, जहां अप्रशिक्षित श्रमिक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों के बिना खतरनाक प्रक्रियाओं को पूरा करते हैं। इसलिए अगर सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह ई-वेस्ट और उसकी रिसाइक्लिंग को अपने नियंत्रण में रखेगी तो गलत नहीं है।

विकसित देश खुद को सुरक्षित रखने के लिए कई कुटिल तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। वे अपने बहुत सारे ई-वेस्ट को ‘रिसाइक्लिंग’ के नाम पर एशिया और अफ्रीका भेज देते हैं। वास्तव में यह उनका ई-कचरे से छुटकारा पाने का सबसे आसान तरीका है। इसमें से बहुत सारे कचरे को तो बस जला दिया जाता है। चीन की ई-वेस्ट साइट ‘गुयिवू’ में डाइऑक्सिन और हेवी मेटल्स की दुनिया में सबसे ज्यादा सांद्रता रिकॉर्ड की गई है। वहां के पानी में  सीसे की मात्र सुरक्षित स्तर से 2400 गुना ज्यादा है। तथ्य यह है कि इससे एक दुष्चक्र पैदा होता है। ग्रामीण अपने खेतों में फसलें नहीं उगा सकते क्योंकि जमीन बुरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है। फलस्वरूप आजीविका के लिए उन्हें रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री में काम करना पड़ता है, जिससे उनका स्वास्थ्य और खराब होता है और प्रदूषित वातावरण में काम करने से उनके तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचता है, रक्त संरचना विकृत होती है, लंग्स, लीवर और किडनी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मौत हो जाती है। वहां काम करने वाले बच्चों के स्वास्थ्य को वयस्कों की तुलना में ज्यादा नुकसान पहुंचता है।  

ई-कचरे के सुरक्षित निपटान के लिए शिक्षा और जागरूकता महत्वपूर्ण है। नागरिकों को इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है। सरकार को सार्वजनिक और निजी- दोनों क्षेत्रों में रिसाइक्लिंग की सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। एक बार ई-कचरे के रिसाइक्लिंग सेंटर पहुंचने के बाद प्रक्रिया बेहद जटिल होती है। कचरे के बारीक टुकड़े करने के बाद उसमें से सभी तत्व अलग-अलग कर लिए जाते हैं।

एक अध्ययन के अनुसार, भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों की मांग 2020 तक 41 प्रतिशत बढ़कर 400 बिलियन डॉलर को पार कर जाने की संभावना है। इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग 1।7 ट्रिलियन डॉलर मूल्य के साथ दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाला उद्योग है। इस चकित कर देने वाले आंकड़े को देखते हुए, जो ई-कचरा उत्पन्न होगा, अगर उसके निपटान के लिए अभी से समुचित प्रबंध नहीं किया गया तो वह पूरी एक पीढ़ी को पंगु बना सकता है। इसके लिए सरकार को और नागरिकों को मिलकर कार्य करने की जरूरत है, तभी ई कचरे   की भयानक आपदा से बचा जा   सकेगा।

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