कश्मीर में पिता द्वारा की गई गलतियों को भोग रहे हैं बच्चे, नहीं मिल रहा है पासपोर्ट
By सुरेश एस डुग्गर | Published: August 29, 2022 05:15 PM2022-08-29T17:15:15+5:302022-08-29T17:22:10+5:30
जम्मू-कश्मीर में पिछले तीन सालों के बीच लगभग एक लाख से अधिक कश्मीरी नागरिकों को रीजनल पासपोर्ट आफिस ने पासपोर्ट जारी करने से केवल इस आधार पर मना कर दिया क्योंकि उनके परिवार वाले या फिर रिश्तेदार आतंकी थे या उनके सहयोगियों थे।
जम्मू: करीब एक लाख से अधिक कश्मीरियों पर वह कहावत पूरी तरह से सही साबित हो रही है, जिसमें कहा जाता है कि लम्हों की होती है खता और सदियों को मिलती सजा। असल में पिछले तीन सालों के अरसे में एक लाख से अधिक कश्मीरी नागरिकों को रीजनल पासपोर्ट आफिस ने पासपोर्ट जारी करने से केवल इसलिए मना कर दिया क्योंकि वे किसी न किसी रूप में आतंकियों या उनके सहयोगियों के रिश्तेदार रहे हैं। पासपोर्ट दफ्तर ने इन सभी को ब्लैक लिस्ट में डाला दिया है।
जिन कश्मीरियों को पासपोर्ट जारी करने से इंकार किया गया है, उनमें से अधिकतर छात्र हैं। ये छात्र या तो विदेशों में पढ़ाई करने के लिए जाना चाहते हैं या फिर विदेशी स्कूलों-कालेजों या प्रोफेशनल विश्वविद्यालयों से स्कॉलरशिप पाकर विदेश जाना चाहते हैं। उसके बाद दूसरे नम्बर पर बिजनेसमैन आते हैं, जिन्हें व्यापार के लिए अन्य देशों में जाना था।
इंटरनेशनल ला की धारा 12 के तहत घूमने फिरने का दिया गया अधिकार कश्मीर की विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां इन लोगों से इसलिए छीन रही हैं क्योंकि वे तो नहीं लेकिन उनके सगे संबधी सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर आतंकी गतिविधियों से जुड़े रहे हैं। ऐसे मामलों में पासपोर्ट के लिए आवेदन करने वालों का कहना था कि आखिर हमारा क्या कसूर है अगर हमारा कोई रिश्तेदार या परिवार का सदस्य आतंकी था या फिर आतंकी गतिविधियों में शामिल रहा था।
कुछ अरसा पहले की सबसे बड़ी घटना में पासपोर्ट आफिस ने अलगाववादी नेता शब्बीर शाह की बेटी समां शब्बीर शाह को पासपोर्ट देने से इंकार कर दिया था। वह लंदन में एलएलबी की पढ़ाई करना चाहती है। इसी तरह से पाकिस्तान में रह रहे आतंकी नेता मुश्ताक जरगर की बेटी को पासपोर्ट इस तर्क के साथ नहीं दिया गया था कि उसके पिता आतंकी हैं।
हालांकि कुछ साल पहले ऐसे ही कई मामलों में तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दखलंदाजी करते हुए कुछ उन कश्मीरियों को पासपोर्ट दिलवाने में सहायता की थी जिनका कोई न कोई रिश्तेदार किसी न किसी तरह से आतंकवाद से जुड़ा हुआ था लेकिन पम्पोर का रहने वाला साकिब इतना खुशकिस्मत नहीं था।
साकिब के पिता आतंकी थे और इस बात की सजा अब उसे भुगतनी पड़ रही है। उसके पिता गुलाम मोहिउद्दीन 1998 में सुरक्षाबलों के हाथों मारे गये थे और अब साकिब लंदन के एक संस्थान से मिली स्कालरशीप पर पढ़ने के लिए जाना चाहता था पर सुरक्षा एजेंसियों ने उसे इस आधार पर रोक लिया कि उसके पिता ने जो कसूर किया है, उसकी सजा उसके बेटे को भुगतनी होगी।
ऐसे करीब एक लाख मामले हैं जिनमें सुरक्षा एजेंसियों द्वारा आपत्ति इसी आधार पर दर्ज की गई कि उनके सगे-संबंधी या रिश्तेदार आतंकी थे या फिर आतंकवाद का समर्थन करते रहे हैं। ऐसे लोगों में वे भी शामिल थे जो हज पर जाना चाहते थे पर सुरक्षा एजेंसियों की इस करतूत के कारण हज यात्रा से वंचित हो गए थे। ऐसा सिर्फ कश्मीर में ही नहीं बल्कि जम्मू संभाग में भी हुआ है, जहां आतंकियों के परिजनों तथा रिश्तेदारों को पासपोर्ट से वंचित किया जा चुका है।
इस संबंध में श्रीनगर के रीजनल पासपोर्ट अधिकारी कहते थे कि वे तो सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट मिलने के बाद ही संबंधित लोगों को पासपोर्ट जारी कर सकते हैं। अतः उनका इस मामले में सीधा कोई लेना-देना नहीं है। याद रहे बिना सीआईडी रिपोर्ट के राज्य में पासपोर्ट नहीं मिलता है जबकि तत्काल पासपोर्ट की सुविधा जम्मू कश्मीर के लोगों को प्राप्त नहीं है।