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ये है PPP मॉडल की हकीकत, हबीबगंज स्टेशन का अनुभव बयां करता है कितनी खतरनाक हैं  BJP की नीतियां 

By खबरीलाल जनार्दन | Updated: March 1, 2018 08:00 IST

पीपीपी मॉडल की आदर्श कंपनी ने दोपहिया वाहनों के लिए मासिक पास शुल्क 5,000 रुपये और चार पहिया गाड़ियों के लिए 16,000 रुपये कर दिया था।

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ठळक मुद्दे दिनभर बाइक खड़ी करने का किराया 240 रुपए और 24 घंटे तक कार खड़ी रखने के अब 590 रुपए पीपीपी मॉडल की आदर्श कंपनी ने दोपहिया वाहनों के लिए मासिक पास शुल्क 5,000 रुपये और चार पहिया गाड़ियों के लिए 16,000 रुपये कर दिया था।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार रेलेव संबंधित अपने पीपीपी मॉडल (पब्लिक-प्राईवेट पार्टनरशिप) के लिए खुद की पीठ थपथपा रही है। सरकार ने अपने इस मॉडल के तहत देशभर के रेलवे स्टेशनों को निजी कंपनियों को सौंपने की पूरी तैयारी कर ली है। बीजेपी इसे मॉर्डनाइजेशन या आधुनिकीकरण का नाम देती है। लेकिन मध्य प्रदेश के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का अनुभव बीजेपी सरकार के इस मॉडल की कुछ और ही हकीकत बयां कर रहा है।

सरकार ने पिछले साल हबीबगंज रेलवे स्टेशन को मध्य प्रदेश की कंपनी बंसल ग्रुप को बेचा था। तब इसके पहले पीपीपी मॉडल में विकसित होने वाले रेलवे स्टेशन के तौर पर प्रचार किया। बड़े-बड़े विज्ञापन चलाए गए। लेकिन सालभर के भीतर इसकी इस मॉडल के विकास की हकीकत सामने आने लगी।

हबीबगंज स्टेशन पर कार खड़ी करने का मासिक पार्किंग शुल्क 16,000 रुपये 

स्टेशन का कथ‌ित तौर पर विकास करने आई बंसल पाथवे हबीबगंज प्राइवेट लिमिटेड ने हबीबगंज स्टेशन पर पार्किंग शुल्क कई गुना बढ़ा दिया था। स्‍थानीय मीडिया के अनुसार दिनभर बाइक खड़ी करने का किराया 240 रुपए और 24 घंटे तक कार खड़ी रखने के अब 590 रुपए लग रहे हैं।

जानकारी के अनुसार पिछले महीने की पहली तारीख (1 फरवरी) पीपीपी मॉडल की आदर्श कंपनी ने दोपहिया वाहनों के लिए मासिक पास शुल्क 5,000 रुपये और चार पहिया गाड़ियों के लिए 16,000 रुपये कर दिया था।

जबकि दो घंटे के लिए टू व्हीलर्स वाहन खड़ा करने पर 15 व फोर व्हीलर्स वाहन खड़ा करने के लिए 40 रुपये कर दिया गए थे। स्‍थानीय लोग इसका जमकर विरोध कर रहे हैं। इस पर फिलहाल काफी विवाद चल रहा है। अहम बात यह है कि इसमें रेलवे प्रशासन कुछ नहीं कर पा रहा है। आम लोग अपनी शिकायत लेकर रेलवे के पास जा रहे हैं लेकिन रेलवे के वश में कुछ है नहीं। जबकि प्राइवेट कंपनी के पास आम लोगों की पहुंच नहीं पा रही है।

रेलवे की नहीं सुन रही प्राइवेट कंपनी, किराया घटाने से साफ इंकार

यह छिपा नहीं है कि इस तरह की योजनाओं को खरीदने के लिए प्राइवेट कंपनियां पैसा कैसे पानी की तरह बहाती हैं। फिर वह जनता से ही पैसे वसूलती हैं। ऐसे में केंद्र सरकार की योजना पर हबीबगंज का विकास करने पहुंची सह प्राइवेट कंपनी पहले तो रेलवे के अधिकारियों के हस्तक्षेप के बावजूद पार्किंग चार्ज घटाने से साफ इनकार कर दी। लेकिन भारी विरोध को देखते हुए कुछ फीस कम की। इसके बावजूद यह आम पा‌र्किंग शुल्कों के करीब 10 गुना तक अधिक है।

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कम किए पार्किंग चार्ज इस तरह हैं, दोपहिया वाहनों का मासिक पास शुल्क 4,000 व चार पहिया गाड़ियों के लिए 12,000 रुपये। दोपहिया वाहनों का दिनभर का पार्किंग चार्ज 175 व चार पहिया वाहनों के लिए 460 रुपये।

नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी-2006

भोपाल के डीआरएम ने जब पार्किंग चार्ज का अप्रूवल देने वाले इंडियन रेलवे स्टेशन डेवलपमेंट कारपोरेशन के अधिकारियों से बातचीत की। पहले तो नए रेट तय करने वाली बंसल-हबीबगंज पाथ-वे प्राइवेट लि. के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर ने चार्ज घटाने से साफ इंकार किया उन्होंने कहा कि नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी-2006 के तहत यह चार्ज बढ़ाए हैं।

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उनके अनुसार इसमें पार्किंग के लिए उपयोग की जा रही जमीन का सालभर का किराया और उसकी कीमत का अनुपात देखकर चार्ज तय किया जाता है। अभी चार्ज और बढ़ाया जाएगा। जबकि वाहनों की सुरक्षा को लेकर कंपनी की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। यानी पार्किंग में गाड़ी में कोई डेंट आ जाए, कोई सामान चोरी चला जाए या कोई और नुकसान हो जाए तो वह ऐसे किसी नुकसान की जवाबदेही नहीं होगी।

पहला आईएसओ प्रमाणित रेलवे स्टेशन है हबीबगंज 

हबीबगंज पहला आईएसओ प्रमाणित रेलवे स्टेशन है। पिछले साल मार्च में इसे सबसे स्वच्छ रेलवे स्टेशन का अवार्ड मिला। इसमें वहां की जनता ने सरकार का खूब सहयोग किया। स्टेशन पर गंदगी को ना कह दिया। इसके फलस्वरूप उन्हें बीजेपी सरकार का पुनर्विकास व आधुनिकीकरण का कथ‌ित उपहार मिला। रेलवे स्टेशन को आधुनिक बनाने के लिए बंसल ग्रुप को ठेका दिया गया और इस तरह से भारतीय रेल स्टेशन विकास निगम लिमिटेड (आईआरएसडीसी) और बंसल ग्रुप के बीच समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से यह देश का पहला प्राइवेट रेलवे स्टेशन बन गया है।

इसके तहत यह तय किया गया कि स्टेशन पर पॉर्किंग, खानपान आदि का एकाधिकार तो कंपनी के पास रहेगा। इसके अलावा कंपनी स्टेशन पर एस्केलेटर, शॉपिंग के लिए दुकानें, फूड कोर्ट और अन्य सुविधाओं का विस्तार भी करेगी। लेकिन कंपनी ने एकदम उलट काम शुरू किया। कंपनी पूरा ध्यान लाभ कमाने में लगा दिया। 

10 गुना ज्यादा खुदाई करा के खनिज बाजार में बेच रही कंपनी

स्‍थानीय अखबारों की मानें तो सेवाओं के निजीकरण होते ही बंसल पाथवे हबीबगंज लिमिटेड द्वारा हबीबगंज स्टेशन परिसर में कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के बेसमेंट निर्माण के लिए मंजूरी से अधिक खुदाई कराई थी। जानकारी अनुसार कंपनी के पास 2 हजार घनफीट के खुदाई की मंजूरी की तुलना में 10 गुना अधिक खुदाई की गई थी। यही नहीं इस खुदाई से निकले खनिज को बाद में रेलवे के निर्माण कार्य में इस्तेमाल करना था लेकिन इसे बाजार में बेचा जा रहा है।

बीजेपी सरकार अपने इसी मॉडल को रेलवे के क्षेत्र का क्रांतिकारी बदलाव बता रही है। लेकिन हबीबगंज के शुरुआती अनुभव बताते हैं कि रेलवे के निजीकरण के कितने व्यापक और खतरनाक प्रभाव पड़ने वाले हैं।

23 अन्य स्टेशनों को निजी कंपनियों को सौंपने की पूरी तैयारी

बीजेपी सरकार को अपने इस मॉडल पर पूरा भरोसा है। वह आगे भी इस मॉडल पर देश के 23 अन्य स्टेशनों को निजी हाथों में देने को लेकर प्रतिबद्ध नजर आ रही है। इतना ही नहीं पीएम मोदी के पुराने भाषणों में देश के 400 रेलवे स्टेशनों को पीपीपी के तहत अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने की बात कई बार सुनी गई है। लेकिन इसका पहला उदाहरण डरा रहा है।

इससे यात्रियों को किसी तरह की सहूलियत मिलने के बजाए भारी कीमत चुकाने का खामियाजा भरना पड़ रहा है। हबीबगंज का अनुभव बयां करता है कि कैसे रेलवे का किसी भी तरह का निजीकरण करोड़ों-करोड़ यात्रियों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

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