Ramprasad Bismil birth anniversary: 30 साल की उम्र, फांसी और आत्मकथा, जानिए रामप्रसाद बिस्मिल से जुड़ी खास बातें

By विनीत कुमार | Published: June 11, 2020 10:00 AM2020-06-11T10:00:00+5:302020-06-11T10:08:43+5:30

रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म यूपी के शाहजहांपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका नाम सबसे ज्यादा चर्चित काकोरी कांड के लिए है, जिसने अंग्रेजों के माथे पर बल ला दिया था।

Ramprasad Bismil birth anniversary who gave his life for indias independence | Ramprasad Bismil birth anniversary: 30 साल की उम्र, फांसी और आत्मकथा, जानिए रामप्रसाद बिस्मिल से जुड़ी खास बातें

राम प्रसाद बिस्मिल के बारे में जानिए कुछ खास बातें (फाइल फोटो)

Highlightsयूपी के शाहजहांपुर में 11 जून, 1897 को हुआ था रामप्रसाद बिस्मिल का जन्मकेवल 30 साल की उम्र में झूल गये थे फांसी के फंदे पर बिस्मिल, गोरखपुर में बिताए थे अपने आखिरी कुछ दिन

रामप्रसाद बिस्मिल का नाम आते ही काकोरी कांड की याद आ जाती है। काकोरी की उस घटना के महानायक देश की आजादी के लिए अपने जीवन का बलिदान देने वाले बिस्मिल का जन्म 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। उर्दू और हिंदी के एक बेहतरीन कवि बिस्मिल का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज बुंदेलखंड क्षेत्र से थे।

क्यों किया गया था काकोरी लूट कांड को अंजाम

देश में तब चारों ओर अंग्रेजों से आजादी की मांग जोर पकड़ रही थी। चौरी-चौरा कांड के बाद अचानक महात्मा गांधी की ओर से असहयोग आंदोलन वापस ले लिया गया। इस बीच बिस्मिल का भी अहिंसक कोशिशों से आजादी हासिल करने की बात से मोहभंग हो गया। इसके बाद में चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व वाले हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ जुड़ गए।

हालांकि, क्रांति के इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए शस्त्र चाहिए थे। शस्त्र और हथियार के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथियों ने 9 अगस्त, 1925 को ट्रेन से ले जाया जा रहा सरकारी खजाना काकोरी में लूट लिया। बाद में सितंबर, 1925 में वे पकड़ लिए गए और उन्हें लखनऊ की सेंट्रल जेल में रखा गया। बाद में अंग्रेज शासन ने अशफाक उल्लाह खान, रौशन सिंह और राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी के साथ उन्हें भी फांसी की सजा सुनाई।

रामप्रसाद बिस्मिल ने लिखी कई किताबें

बिस्मिल को पढ़ने-लिखने का शौक शुरू से था। अपने परिवारिक पृष्ठभूमि के कारण वे बहुत कम उम्र में ही एक समर्पित आर्य समाजी बन गए थे। वे अपने गुरु स्वामी सोमदेव के कारण अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में कूदे थे। उन्होंने 1916 में किताब लिखी- 'अमेरिका को स्वाधीनता कैसे मिली'। साल 1920 में उन्होंने एक पब्लिशिंग हाउस भी शुरू की और कविताओं का एक संग्रह 'बोलसेविकों की करतूत' प्रकाशित किया। यह रूसी आंदोलन पर आधारित था। अपने 30 साल के जीवन में छोटी-बड़ी उन्होंने 10 से ज्यादा किताबें लिखी। हालांकि, कई किताबों को अंग्रेजों द्वारा नष्ट भी कर दिया गया।

बहरहाल, क्रांति के रास्ते पर चलने और फिर पकड़े जाने के बाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा भी लिखी जिसे प्रताप प्रेस की ओर से प्रकाशित किया गया। ये आत्मकथा उन्होंने जेल में अपने आखिरी दिनों में लिखी और कहते हैं कि फांसी के पहले उन्होंने  इसे किसी मिलने आए करीबी के हाथों बाहर भिजवा दी थी। दरअसल, डर था कि अंग्रेज इसे भी नष्ट करा देंगे।

गोरखपुर से खास नाता

बिस्मिल का यूपी के गोरखपुर से खास नाता है। उन्होंने दरअसल अपने जीवन के आखिरी चार महीने और दस दिन यही जिला जेल में बिताए थे। फांसी के तीन दिन पहले ही उन्होंने अपनी आत्मकथा को पूरा किया था। 19 दिसंबर 1927 की सुबह 6:30 बजे गोरखपुर जिला जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। 

Web Title: Ramprasad Bismil birth anniversary who gave his life for indias independence

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