दिल्ली में बीते 21 साल में कई प्रधानमंत्री और मंत्री बदले, हर पांच साल में कई सांसद आए-गए, लेकिन संसद का एक डाकिया लगातार सत्ता के गलियारों में बना रहा और अब आखिरी डाक पहुंचाकर वह जिम्मेदारियों से मुक्त हो गया। एक आम आदमी राम शरण बीते दो दशक तक भारत के सबसे शक्तिशाली लोगों के बीच रहे और मंगलवार को वह सेवानिवृत्त हो गए। उन्होंने ''सभी को समान महत्व देते हुए सेवा की और उनके काम की कभी कोई शिकायत नहीं हुई।'' राम शरण ने मंगलवार को डाक सेवा से अपनी विदाई से एक दिन पहले 'पीटीआई-भाषा' से कहा, ''यदि आप गलतियां करते हैं और आपकी शिकायतें आतीं हैं, तो आपको 21 साल तक सदन के अंदर डाक भेजने का मौका नहीं मिल सकता।'' राम शरण ने तीन दिन पहले शुक्रवार को संसद में अपना अंतिम डाक पहुंचायी। अगर सोमवार को जन्माष्टमी नहीं होती, तो आज "संसद में" उनका आखिरी कार्य दिवस होता। विशाल संसद भवन परिसर के अंदर डाक पहुंचाने के लिए एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय तक घंटों चक्कर लगाने वाले, राम शरण ने कहा कि वह संसद मार्ग पर रेड क्रॉस भवन के बाहर चुपचाप चाय की चुस्की लेते हुए उस दिन किये गए अपने काम के बारे में विचार करते थे।उन्होंने कहा, ''मैंने कभी किसी को निराश नहीं होने दिया। अगर किसी ने मुझसे उनकी डाक नहीं पहुंचने के बारे में पूछा, तो मैं यह सुनिश्चित करता था कि यह उन तक पहुंचे या कम से कम यह पता चले कि यह कहां अटकी हुई है। वरिष्ठ मंत्री हों या आप या मुझ जैसे सामान्य व्यक्ति, मेरा काम उनकी डाक को पहुंचाना था, जो मैंने बखूबी किया।'' संसद भवन में बिताए गए समय को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनके लिए मंत्रियों या उनके कर्मचारियों से मिलना-जुलना असामान्य बात थी। साठ वर्षीय राम शरण ने कहा, ''प्रधानमंत्री और मंत्री, ये सभी लोग बदलते रहे, लेकिन मेरा ध्यान हमेशा अपने कर्तव्य पर रहा। डाकघर ने मुझे एक कर्तव्य दिया और यह मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं इसे अच्छी तरह निभाऊं।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।