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राम जेठमलानी की इन दलीलों ने बदल दिया था नानावती-प्रेम आहूजा केस का रुख, पूरे देश में बनाई थी पहचान

By आदित्य द्विवेदी | Updated: September 8, 2019 12:47 IST

महज 17 साल की उम्र में वकालत की डिग्री लेने वाले राम जेठमलानी ने 1959 में अपना पहला हाई प्रोफाइल केस लड़ा। यह केस था चर्चित के.एम. नानावती बना महाराष्ट्र सरकार। उस ज़माने में अपना करियर शुरू कर रहे राम जेठमलानी को इस केस ने राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया।

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ठळक मुद्देनानावती-प्रेम आहूजा केस में जेठमलानी सरकारी वकील यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के सहायक थे।नानावती केस के समय जेठमलानी जूनियर वकील थे लेकिन उन्होंने केस पर पूरी मेहनत की थी।

जाने-माने वकील और पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री राम जेठमलानी का निधन हो गया। वो 95 साल के थे। उन्होंने राजधानी दिल्ली स्थित अपने आवास में आखिरी सांस ली। जेठमलानी काफी समय से बीमार चल रहे थे। महज 17 साल की उम्र में वकालत की डिग्री लेने वाले राम जेठमलानी ने 1959 में अपना पहला हाई प्रोफाइल केस लड़ा। यह केस था चर्चित के.एम. नानावती बना महाराष्ट्र सरकार। उस ज़माने में अपना करियर शुरू कर रहे राम जेठमलानी को इस केस ने राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया।

क्या है नानावती-प्रेम आहूजा केस

के.एम. नानावती नौसेना के कमांडर थे। उनकी बीवी सिल्विया का प्रेम आहूजा नाम के शख्स के साथ अवैध संबंध थे। यह बात नानावती को पता चली तो वो 27 अप्रैल 1957 को प्रेम आहूजा से मिलने उसके घर पहुंचे। बंद कमरे में तीन गोलियां चलाकर उन्होंने प्रेम आहूजा की हत्या कर दी। इसके बाद पुलिस स्टेशन पहुंचकर नानावती ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया।

राम जेठमलानी का केस से जुड़ाव

नानावती-प्रेम आहूजा केस में राम जेठमलानी लोअर कोर्ट के सरकारी वकील के सहायक थे। बाद में ये केस हाई कोर्ट पहुंचा तो जेठमलानी सरकारी वकील यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ के भी सहायक बन गए। चंद्रचूड़ 1978 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी बने थे। इस केस का मीडिया ट्रायल हुआ और जन-भावनाएं नानावती के साथ थी लेकिन जेठमलानी की दलीलों ने केस का रुख बदल दिया।

जेठमलानी की दलीलें

नानावती केस के समय जेठमलानी जूनियर वकील थे लेकिन उन्होंने केस पर पूरी मेहनत की थी। जेठमलानी ने दलील दी कि अगर गोलियां हाथापाई के बाद चली थी तो प्रेम भाटिया का तौलिया गोलियां लगने के बाद भी कमर से बंधा हुआ क्यों था? उनकी दलीलों की वजह से डिफेंस की कहानी धाराशाई हो गई। हाईकोर्ट ने नानावती को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 11 दिसंबर 1961 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सजा पर मुहर लगा दी।

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