राजस्थानः करोड़ों के पंख नहीं, जीरो बजट के हौसलों के दम पर उड़ान भरती रही हैं राजस्थानी फिल्में!
By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 18, 2019 16:45 IST2019-12-18T16:45:34+5:302019-12-18T16:45:34+5:30
राजस्थान, फिल्मी लोकेशन के लिहाज से श्रेष्ठ है, जहां पश्चिमी राजस्थान में रेगिस्तान का सागर है, तो दक्षिण राजस्थान में हरियाली का साम्राज्य है, लेकिन फिल्म बनाने के लिए जो तकनीकी सपोर्ट चाहिए, सरकारी सुविधाएं चाहिए, फिल्मों के लिए जो डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क चाहिए, उनका अभाव है.

राजस्थानः करोड़ों के पंख नहीं, जीरो बजट के हौसलों के दम पर उड़ान भरती रही हैं राजस्थानी फिल्में!
राजस्थानी फिल्में केवल हौसलों के दम पर जिंदा हैं, वरना तो राजस्थानी सिनेमा ने कभी का दम तोड़ दिया होता. राजस्थान में एक से बढ़ कर एक हिन्दी, अंग्रेजी आदि भाषाओं की फिल्में बनी, लेकिन राजस्थानी फिल्मों ने कभी लंबा यादगार सुनहरा समय नहीं देखा. सुपर हिट के नाम पर बाबा रामदेव (1963), बाई चाली सासरिये (1988) जैसी बहुत कम फिल्में हैं.
राजस्थान, फिल्मी लोकेशन के लिहाज से श्रेष्ठ है, जहां पश्चिमी राजस्थान में रेगिस्तान का सागर है, तो दक्षिण राजस्थान में हरियाली का साम्राज्य है, लेकिन फिल्म बनाने के लिए जो तकनीकी सपोर्ट चाहिए, सरकारी सुविधाएं चाहिए, फिल्मों के लिए जो डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क चाहिए, उनका अभाव है.
जिन राज्यों में हिंदी का असर कम रहा है, वहां तो क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में चलती रही हैं, लेकिन राजस्थान जैसे प्रदेश में, जहां हिंदी आसानी से बोली और समझी जाती है, वहां गुजरते समय के साथ क्षेत्रीय फिल्में कमजोर पड़ती गई हैं.
राजस्थानी फिल्मों के पास न तो करोड़ों का बजट होता है और न ही लेटेस्ट टेक्नोलाॅजी का सपोर्ट मिलता है, इसलिए राजस्थानी में क्वालिटी के लेवल पर श्रेष्ठ फिल्म बनाना बहुत मुश्किल काम हैं. बीसवीं सदी में आपसी सहयोग से पहली जीरो बजट फिल्म- तण वाटे बनी थी, तो आज भी ज्यादातर फिल्में जीरो बजट के आसपास ही बन रही हैं.
बहरहाल, राजस्थानी फिल्में आज भी अगर उड़ान भर रही हैं, तो उन फिल्मकारों के हौसलों के दम पर जिन्हें लाभ-हानि की परवाह नहीं है, वरना तो राजस्थानी फिल्म इंडस्ट्री के पास करोड़ों के बजट और सुविधाओं के पंख न तो पहले थे और न ही आज भी हैं!