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राजस्थान चुनावः इन जाट नेताओं का है दबदबा, नाराज हुए तो बिगाड़ सकते हैं बीजेपी-कांग्रेस के समीकरण

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: October 31, 2018 07:44 IST

अभी जयपुर में हनुमान बेनीवाल की सफल सभा ने कांग्रेस और भाजपा, दोनों के लिए बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है? पिछले विस चुनाव में भाजपा से बागी होकर बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत कर आए जाट समाज के नेता हनुमान बेनीवाल ने जयपुर में हुई सभा में अपनी नई- राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की घोषणा की।

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राजस्थान की राजनीति में शुरू से ही जाट नेताओं का दबदबा रहा है और जाट नेता सियासत की समीकरण बदलने का दमखम भी रखते हैं, लेकिन प्रमुख जाट नेता परसराम मदरेणा, नाथूराम मिर्धा आदि के गुजर जाने के बाद प्रादेशिक जाट नेता की जगह खाली हो गई थी। आजादी के बाद से प्रमुख जाट नेताओं का जुड़ाव कांग्रेस के साथ ही रहा, लिहाजा मारवाड़, शेखावाटी जैसे क्षेत्रों में कांग्रेस की पकड़ मजबूत रही। 

भाजपा-कांग्रेस का बिगड़ सकता है समीकरण

अभी जयपुर में हनुमान बेनीवाल की सफल सभा ने कांग्रेस और भाजपा, दोनों के लिए बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है? पिछले विस चुनाव में भाजपा से बागी होकर बतौर निर्दलीय उम्मीदवार जीत कर आए जाट समाज के नेता हनुमान बेनीवाल ने जयपुर में हुई सभा में अपनी नई- राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की घोषणा की, लेकिन भाजपा-कांग्रेस के लिए बड़ी परेशानी की बात रही- भारत वाहिनी पार्टी के अध्यक्ष घनश्याम तिवाड़ी की मौजूदगी। इसे राजस्थान में प्रभावी तीसरे मोर्चे के तौर पर देखा जा रहा है और यदि इसे बसपा का साथ मिला तो जाट, ब्राह्मण और पिछड़ा वर्ग का सियासी समीकरण भाजपा-कांग्रेस की गणित बिगाड़ सकता है।

100 सीटों पर सवालिया निशान

सबसे बड़ी बात ये है कि इन पार्टियों का प्रभाव क्षेत्र आधा उत्तरी राजस्थान ही है। मतलब, राजस्थान में विस की 200 सीटों में से आधी करीब 100 सीटों पर सवालिया निशान लग जाएगा? जहां कईं सीटों पर भाजपा को नुकसान होगा, वहीं, कुछ सीटों पर कांग्रेस को भी घाटा होगा। आजादी के बाद राजतंत्र खत्म हुआ और लोकतंत्र की स्थापना हुई तो जहां राजपूत समाज कांग्रेस के साथ नहीं रहा वहीं, जाट समुदाय कांग्रेस के साथ आ गया। जाटों का साथ कांग्रेस को मिला तो खासकर शेखावाटी और मारवाड़ में कांग्रेस ने कामयाबी का परचम लहरा दिया।

ये नेता पहचान बनाने में सफल रहे

राजस्थान में जाट समाज के दबदबे की राजनीति बलदेव राम मिर्धा से शुरू हुई तो परसराम मदरेणा, नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, शीशराम ओला जैसे जाट नेता प्रदेश स्तर पर अपनी विशेष पहचान बनाने में सफल रहे। जाट समुदाय के ही विश्वेंद्र सिंह, कर्नल सोना राम, रिछपाल मिर्धा, ज्योति मिर्धा, रामनारायण डूडी, महीपाल मदेरणा आदि भी राजस्थान की राजनीति में उभर कर तो आए, परंतु राजस्थान में जाट समुदाय कभी अपना मुख्यमंत्री नहीं बनवा पाया।

दक्षिण राजस्थान में छोटे दलों का असर नहीं

जाट समुदाय का सकारात्मक पक्ष यह है कि यह दृढ़ विचारों वाला एकजुट प्रभावी समाज है, लेकिन इनका प्रभाव क्षेत्र करीब एक तिहाई राजस्थान ही है, इसलिए तीसरे मोर्चे की संपूर्ण कामयाबी के लिए दक्षिण राजस्थान में मजबूत सहयोगी की जरूरत पड़ेगी, किंतु परेशानी यह है कि इस वक्त दक्षिण राजस्थान में कांग्रेस-भाजपा के अलावा किसी और सियासी दल का कुछ खास असर नहीं है और न कोई ऐसा बड़ा बागी नेता है जो दक्षिण राजस्थान की राजनीतिक तस्वीर बदल कर रख दे! ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि- तीसरा मोर्चा बगैर कांग्रेस-भाजपा के समर्थन के सत्ता में कैसे आएगा?

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