राजस्थान चुनावः तीसरे मोर्चे के सामने खड़ा हुआ पहला बड़ा सवाल, कौन बनेगा CM?
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 29, 2018 04:02 PM2018-10-29T16:02:07+5:302018-10-29T16:02:07+5:30
भाजपा छोड़कर अपना नया राजनीतिक दल- भारत वाहिनी पार्टी, गठित करने वाले घनश्याम तिवाड़ी राजस्थान की सीएम वसुंधरा का लगातार विरोध करते रहे हैं और यदि वे सीएम के दावेदार नहीं होते तो भाजपा क्यों छोड़ते?
राजस्थान की राजनीति में अब तक कांग्रेस और भाजपा दो ही सियासी दलों के बीच फैसला होता रहा है, लेकिन इस बार तीसरे मोर्चे की चर्चा भी हो रही है। कहने को तो राजस्थान में तीसरा मोर्चा है, लेकिन इसमें इतने मोर्चे हैं कि किसे तीसरा मोर्चा माने? यह बड़ी उलझन है। तीसरे मोर्चे के सामने सबसे बड़ा पहला सवाल यह है कि कौन बनेगा मुख्यमंत्री?
तीसरा मोर्चा लगा सकता है वोट बैंक में बड़ी सेंध
भाजपा छोड़कर अपना नया राजनीतिक दल- भारत वाहिनी पार्टी, गठित करने वाले घनश्याम तिवाड़ी राजस्थान की सीएम वसुंधरा का लगातार विरोध करते रहे हैं और यदि वे सीएम के दावेदार नहीं होते तो भाजपा क्यों छोड़ते? इधर, निर्दलीय विधायक हनुमान बेनीवाल लगातार सभाएं कर रहे हैं और उनकी शेखावाटी-मारवाड़ में पकड़ है। तीसरे मोर्चे के लिए हनुमान बेनीवाल, घनश्याम तिवाड़ी और बसपा से बातचीत कर रहे हैं। यह तीसरा मोर्चा भाजपा-कांग्रेस के ब्राह्मण, जाट और अजा-जजा वोट बैंक पर सेंध लगा सकता है।
सीट बंटवारे पर सवाल
उधर, विस चुनाव को लेकर सीपीआई, सीपीआई एम, सीपीआई एमएल एमसीपीआईयू, जदयू और सपा ने राजस्थान लोकतांत्रिक मोर्चे की घोषणा की है। इस मोर्चे के घटक दलों के पदाधिकारियों की बैठक में तय किया गया कि आम आदमी पार्टी और बसपा से गठबंधन सहित सीटों के बंटवारे को लेकर यह मोर्चा प्रयास करेगा, लेकिन इस मोर्चे ने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पूर्व विधायक कॉमरेड अमराराम को बनाया है, इसलिए इस मोर्चे का कितना विस्तार हो पाएगा? यह कहना मुश्किल है।
AAP दे रही कांग्रेस-भाजपा को चुनौती
आम आदमी पार्टी भी भाजपा और कांग्रेस को राजस्थान में चुनौती देने जा रही है और आप भी अपनी ओर से तीसरे मोर्चे की बात कर रही है, लेकिन कोई एक प्रभावी तीसरा मोर्चा बन पाएगा, ऐसा लगता नहीं है। तीसरे मोर्चे के लगभग सारे दल प्रदेश की तमाम दो सौ सीटों पर चुनाव लड़ने के दावे कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सियासी दल का प्रभाव क्षेत्र एक तिहाई सीटों से ज्यादा का नहीं है। लिहाजा सीटों का बंटवारा भी आसान नहीं है। माना जा रहा है कि विस चुनाव में तीसरे मोर्चे के सभी दल एकजुट नहीं हुए तो ये दल चुनावी नतीजों को तो प्रभावित करने में कामयाब रहेंगे, लेकिन बड़ी सफलता हासिल कर पाएंगे, इसमें शक है। हालांकि, इन दलों की चुनाव में मौजूदगी भाजपा का बड़ा और कांग्रेस का छोटा नुकसान जरूर करेगी।
(जयपुर से प्रदीप द्विवेदी की रिपोर्ट)