राजस्थान चुनाव: बीजेपी का सता रहा है 'खामोश बगावत' का डर, वरिष्ठ नेता ने दी कैंडिटेट को सलाह- निपटने का दम हो तभी लड़ना
By प्रदीप द्विवेदी | Published: November 12, 2018 08:00 AM2018-11-12T08:00:51+5:302018-11-12T08:00:51+5:30
राजस्थान की कुल 200 विधान सभा सीटों के लिए सात दिसंबर को मतदान होगा। चुनाव नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे। राज्य में पिछले ढाई दशकों से बीजेपी और कांग्रेस की सत्ता बारी-बारी आती रही है।
जयपुर। 11 नवंबर राजस्थान के विभिन्न चुनावों में कांग्रेस को हराने में अक्सर भितरघात की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, इसीलिए सियासी सयाने अक्सर कहते भी हैं- कांग्रेस को कोई और नहीं, कांग्रेस ही हराती रही है!
इस बार भी भितरघात की चर्चाएं गर्म जरूर हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए तसल्ली की बात यह है कि अब यह सियासी रोग भाजपा को भी अपनी गिरफ्त में ले चुका है और कई दिग्गज इससे निपटने के रास्ते तलाश रहे हैं.
भितरघात के कई रूप हैं. खुला भितरघात, बगावत कहलाता है, जब किसी पार्टी के भीतर ही नेतृत्व के खिलाफ आवाज बुलंद होने लगती है. मौन भितरघात में विरोधी खामोश रहते हैं, लेकिन सही समय आने पर सियासी तीर चला देते हैं.
सक्रिय भितरघात में विरोधी नेता सक्रिय भूमिका निभाते हैं और वोट कटवा नेताओं को चुनाव में खड़ा कर देते हैं, जहां कांटे की टक्कर हो, वहां यह सबसे खतरनाक भितरघात साबित होती है.
भितरघात में विरोधी, पार्टी के प्रचार-प्रसार में उदासीन हो जाते हैं और न तो मतदाताओं को प्रेरित करते हैं, न ही उन्हें मतदान केंद्रों तक लाते हैं, मतलब... जीत के वोटों को निष्क्रिय कर देते हैं!
कभी गुजरात के पूर्व मंत्री और दक्षिण राजस्थान में कांग्रेस के पर्यवेक्षक हंसमुख भाई पटेल के सामने एक उम्मीदवार ने भितरघात का मुद्दा उठाया, तो वे बोले- दम है तो लड़ो, भितरघात की शिकायत मत करो?
भितरघात को किसी भी पार्टी में कोई नहीं रोक सकता है, अगर भितरघात को पटकनी देते हुए आगे बढ़े, तभी जीत सकते हो. उन्होंने यह भी कहा कि भितरघात से निपटने की ताकत हो, तभी टिकट की दावेदारी करना!
राजस्थान की कुल 200 विधान सभा सीटों के लिए सात दिसंबर को मतदान होगा। चुनाव नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे। राज्य में पिछले ढाई दशकों से बीजेपी और कांग्रेस की सत्ता बारी-बारी आती रही है।