बुलेट ट्रेन तो चला लेंगे साहब, लेकिन पहले राजस्थान के इस शहर में रेल तो लाइए
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 6, 2018 12:38 PM2018-11-06T12:38:50+5:302018-11-06T12:46:08+5:30
जयपुर, 06 नवबर: भाजपा का खेल इस बार वागड की रेल बिगाड़ सकती है! वागड में दो जिले आते हैं- बांसवाडा और डूंगरपुर. राजस्थान में बांसवाडा एकमात्र ऐसा जिला है जिसकी एक इंच जमीन पर से भी रेल नहीं गुजरती है. आजादी के बाद लंबे समय तक यहां रेल की मांग की जाती रही, परंतु बीसवीं सदी गुजर गई, यहां रेल नहीं आई. पिछली बार अशोक गहलोत की प्रादेशिक सरकार ने केंद्र के साथ समझौता करके रतलाम-बांसवाडा-डूंगरपुर-अहमदाबाद रेल का सपना साकार करने की दिशा में कदम उठाए, किंतु इस बार वसुंधरा राजे सरकार ने आते ही वागड की रेल को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया., कारण? न तो केंद्र सरकार और न ही प्रादेश सरकार इस रेल लाइन के लिए आवश्यक पैसा देने को तैयार थीं. इस मुद्दे को लेकर स्थानीय भाजपा नेताओं ने भी प्रयास किए, किंतु कोई नतीजा नहीं निकला.
जनता इस बात से नाराज है कि केंद्र के पास बुलेट ट्रेन के लिए तो पैसा है, लेकिन वागड की रेल के लिए सरकारी खजाना खाली है. राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीया का कहना हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा को केंद्र एवं राज्य में सरकार बनाने के लिए वागड के लोगों से वोट तो चाहिए, परंतु सरकार में आने के बाद उनकी प्राथमिकता में वागड के विकास की योजनाओं के लिए धन नहीं होता है? उनका कहना है कि बांसवाड़ा जिले को रेल से जोड़ने की योजना को पूर्व की कांग्रेस सरकार ने प्रारंभ करके इसे गति दी, परंतु केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद काम ठप्प हो गया. बांसवाड़ा को रेल से जोड़ने के लिए पीएम ने राशि नहीं दी कांग्रेस नेता का कहना है कि- पीएम मोदी अपने मित्र उद्योगपतियों की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए बुलेट ट्रेन की योजना तो ले आए, किंतु बांसवाड़ा को रेल से जोड़ने के लिए उनके मंत्रालय ने जरूरी धनराशि नहीं दीं और वागड की रेल का काम बंद हो गया.वागड की रेल एमपी-राजस्थान-गुजरात के करीब आधा दर्जन लोकसभा क्षेत्रों और एक दर्जन विधानसभा क्षेत्रों के नतीजों को प्रभावित कर सकती है. अकेले वागड में ही नौ विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें से पहली बार भाजपा ने आठ में जीत हासिल की थी. सवाल यह है कि- भाजपा अपनी विजय यात्रा इस बार भी जारी रख पाएगी या वागड की रेल उसे सियासी पटरी से उतार देगी?