पंजाब-21 : राज्य को मिला पहला दलित मुख्यमंत्री, कृषि कानूनों पर किसान विजेता बन लौटे

By भाषा | Updated: December 31, 2021 16:50 IST2021-12-31T16:50:43+5:302021-12-31T16:50:43+5:30

Punjab-21: The state got its first Dalit chief minister, farmers returned as winners on agricultural laws | पंजाब-21 : राज्य को मिला पहला दलित मुख्यमंत्री, कृषि कानूनों पर किसान विजेता बन लौटे

पंजाब-21 : राज्य को मिला पहला दलित मुख्यमंत्री, कृषि कानूनों पर किसान विजेता बन लौटे

चंडीगढ़, 31 दिसंबर पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस के अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चली तीखी लड़ाई के नाटकीय नतीजे वर्ष 2021 में आए और दिल्ली की सीमा पर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे किसान तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद विजेता बनकर लौटे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अमरिंदर सिंह को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और चरणजीत सिंह चन्नी को इस पद के लिए चुनकर सभी को चौंकाया। इसके साथ ही वह राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री बने।

कांग्रेस ने सिद्धू को पहले पंजाब की पार्टी इकाई का अध्यक्ष बनाया लेकिन ऐसा लगता है कि वह इतने से संतुष्ट नहीं हैं। अमरिंदर सिंह की कांग्रेस से विदाई और किसानों के करीब एक साल तक चले आंदोलन का नतीजा रहा कि नयी पार्टियों और गठबंधनों का उदय हुआ, जिससे विधानसभा चुनाव बहुकोणीय होने की संभावना है। राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए अब महज कुछ सप्ताह बच गए हैं।

बीतते साल के अंतिम महीने दिसंबर में, दो लोगों की भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर दी गई और आरोप लगाया गया कि उन्होंने गुरुद्वारों में कथित बेअदबी करने की कोशिश की थी। इनमें से एक घटना कपूरथला में हुई जहां पुलिस ने पाया कि वास्तव में मृतक ने बेअदबी की कोई कोशिश नहीं की थी और मामले में गृरुद्वारा प्रबंधक पर हत्या का मामला दर्ज किया है। वहीं, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुई घटना में भीड़ हिंसा का शिकार व्यक्ति रेलिंग को फांद पवित्र स्थान पर चला गया था और पुलिस ने उसके खिलाफ कथित बेअदबी करने की कोशिश की प्राथमिकी दर्ज की है, लेकिन इस घटना के बाद हुई व्यक्ति की हत्या के संबंध में एक शब्द नहीं कहा है।

दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर भी इस साल अक्टूबर में वहां जमा निहंगों के समूह ने एक व्यक्ति की कथित तौर पर पवित्र किताब की बेअदबी करने के आरोप में पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। उधर, लुधियाना की अदालत परिसर में हुए धमाके में एक पूर्व पुलिसकर्मी की मौत हो गई है जो कथित तौर पर बम को सक्रिय कर रहा था, इस मामले में छह अन्य घायल हुए थे।

शुरुआती तौर पर नेताओं ने धमाके को कथित रूप से बेअदबी की दो घटनाओं से जोड़ने की कोशिश की और आरोप लगाया कि राज्य को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है।पंजाब में बेअदबी बहुत ही भावनात्मक मुद्दा है और इसी मुद्दे ने सिद्धु को अमरिंदर सिंह के खिलाफ काफी धार दी।

सिद्धू ने आरोप लगाया कि अमरिंदर सिंह वर्ष 2015 में फरीदकोट में गुरु ग्रंथ साहिब की कथित बेअदबी और उसके बाद दो लोगों की पुलिस फायरिंग में हुई मौत के मामले में दोषियों को न्याय के कठघरे में लाने में असफल रहे। इस साल पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने फायरिंग मामले की जांच कर रही विशेष जांच टीम की रिपोर्ट खारिज कर दी थी।

सिद्धू ने अमरिंदर पर सियासी हमला करने के कुछ महीने बाद वर्ष 2019 में उनका मंत्रिमंडल भी छोड़ दिया और आरोप लगाया कि उन्होंने 2017 में पार्टी द्वारा किए गए वादों को पूरा नहीं किया है। मंत्रिमंडल के कुछ अन्य सदस्य और विधायक भी उनके पक्ष में आ गए।

दोनों नेताओं की खींचतान चलती रही और सिद्धू ने अमरिंदर सिंह को ‘‘ फुंका हुआ कारतूस’ तक करार दिया जबकि सिंह ने उन्हें ‘‘ राष्ट्रविरोधी, खतरनाक, अस्थिर और अकुशल करार दिया।’’

सिद्धू और अमरिंदर सिंह की महीनों की लड़ाई के बाद अमरिंदर सिंह की किस्मत का फैसला इस साल सितंबर में हुआ जब पार्टी नेतृत्व ने उनके बिना ही राज्य विधायक दल की बैठक बुलाई जबकि वह विधायक दल के नेता थे। इस बैठक से पहले ही उन्होंने इस्तीफ दे दिया और कहा कि ‘‘वह अपमानित महसूस कर रहे हैं।’’

इस घटना के कुछ हफ्ते बाद अमरिंदर सिंह ने अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस गठित करने की घोषणा की।

दूसरी ओर कांग्रेस नेतृत्व द्वारा बदलाव किए जाने के बाद पंजाब इकाई में विवाद शांत नहीं हुए। सिद्धू को जब भी मौका मिलता है वह नए मुख्यमंत्री पर निशाना साधने से नहीं चूकते।

सिद्धू ने चन्नी सरकार द्वारा नियुक्त एडवोकेट जनरल और पुलिस महानिदेशक को बदलने की मांग को लेकर पार्टी की राज्य इकाई प्रमुख पद से ‘इस्तीफा’दे दिया था। बाद में दोनों पदाधिकारियों को अंतत: बदला गया।

चन्नी पहले ही लोकप्रिय निर्णय लेने में व्यस्त हैं। उनकी सरकार पहले ही लंबित बिजली और पानी के बिल माफ कर चुकी है और घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली कीमतों की दरों में कमी कर चुकी है। इसके साथ ही केबल टीबी शुल्क और बालू की कीमतों में भी कमी लाने की घोषणा कर चुकी है।

उन्होंने दावा किया कि यह ‘‘चन्नी सरकार ’’नहीं है बल्कि ‘ चंगी सरकार’ (अच्छी सरकार) है। चन्नी सरकार ने केंद्र के उस फैसले का भी विरोध किया जिसमें सीमा सुरक्षा बल का कार्यक्षेत्र सीमा से 15किलोमीटर के दायरे से बढ़ाकर 50 किलोमीटर कर दिया गया। उनकी सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें इस फैसले को राज्य पुलिस का ‘अपमान’ करार दिया गया।

नवंबर में करीब 20 महीने से बंद पाकिस्तान स्थित करतापुर कॉरिडोर को खोला गया और चन्नी अपने कुछ मंत्रियों के साथ वहां पर गए।

माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी राज्य में कड़ी चुनौती पेश कर रही है और विधानसभा चुनाव में विभाजित कांग्रेस को मुश्किल का सामना करना पड़ेगा। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) अब भाजपा के साथ नहीं है और उसने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया है, उसकी नजर दलित मतों पर है। अमरिंदर सिंह ने नयी पार्टी बनाई है और उन्होंने भाजपा और शिअद (संयुक्त) से गठबंधन किया है।

चुनावी मंच पर किसान संगठनों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का फैसला किया है। करीब 22 किसान संगठनों ने राजनीतिक मोर्चा ‘संयुक्त समाज मोर्चा’ बनाकर पंजाब विधानसभा चुनाव में उतरने की घोषणा की है। ये पंजाब के उन 32 संगठनों में शामिल हैं जिन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया था और तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमा पर चले आंदोलन का नेतृत्व किया था।

इससे पहले ही हरियाणा भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी भी राजनीतिक दल संयुक्त संघर्ष पार्टी बना चुके हैं और वह भी पंजाब चुनाव में लड़ेंगे।

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