क्या प्रियंका गांधी को भी सोनिया गांधी की तरह अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा?
By विकास कुमार | Published: February 5, 2019 03:59 PM2019-02-05T15:59:15+5:302019-02-05T17:17:18+5:30
सोनिया गांधी जब 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं तो देश में विदेशी बहु के नारे गूंजने लगे. यहां तक कि उनके पार्टी के भी कई नेता उनके विरोध में उतार आये. आज परिस्थितियां बदली हैं लेकिन चुनौतियां फिर भी कम नहीं हैं.
प्रियंका गांधी अपने विदेश दौरे से भारत लौट चुकी हैं. और आते ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियां तेज कर दी है. राहुल गांधी के साथ 2 घंटे की मीटिंग के दौरान पूर्वांचल में कांग्रेस की रणनीतियों पर चर्चा हुई. इस मीटिंग के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ राज बब्बर भी मौजूद थे. प्रियंका गांधी की राजनीतिक सक्रियता ये बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस पार्टी को एक ऐसे प्रदेश में जहां वो पिछले तीन दशक से हाशिये पर हैं, गांधी परिवार के इस नए चेहरे की कितनी शिद्दत से जरूरत है. लेकिन प्रियंका गांधी के लिए चुनौतियां कम नहीं होने वाली हैं.
प्रियंका की अग्नि परीक्षा
गांधी परिवार के सदस्यों के लिए भले ही राजनीति में आसान हो लेकिन जिस तरह से उन्हें भारतीय समाज और तमाम राजनीतिक धारणाओं के बीच खुद को साबित करना होता है, वो राजनीतिक दौर वाकई उनके लिए कठिन होता है. देश की राजनीतिक फिजा में ऐसे भी गांधी परिवार के बारे में तमाम बातें होती हैं जिनमें कुछ बातें विपक्षी पार्टियों के फैलाये गए प्रोपोगंडा के तहत लांच की जाती रही हैं.
सोनिया गांधी जब 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं तो देश में विदेशी बहु के नारे गूंजने लगे. यहां तक कि उनके पार्टी के भी कई नेता उनके विरोध में उतार आये. एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार सोनिया के विरोध में उतरने वाले सबसे पहले नेता थे और जब उन्हें लग गया कि कांग्रेस के भीतर उनके राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की डाल नहीं गलेगी तो उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनायी.
गांधी सरनेम होने की चुनौतियां
2004 में भारतीय जनता पार्टी के शाइनिंग इंडिया के नारे को ध्वस्त करते हुए कांग्रेस सत्ता में आई और इस बार सोनिया गांधी का विरोध बहुत तेज हो गया. बीजेपी की नेता सुषमा स्वराज ने यहां तक कह दिया था कि अगर सोनिया जी प्रधानमंत्री बनीं तो वो अपना सिर मुंडन करवा लेंगी. उमा भारती ने भी कुछ इसी तरह का दावा किया था. खैर, सोनिया एक समझदार राजनीतिज्ञ निकली और उन्होंने पीएम पद को स्वेच्छा से नाकार दिया.
नरेन्द्र मोदी का ताना
प्रियंका गांधी इस मामले में थोड़ी खुशकिस्मत हैं. आज गांधी परिवार को लेकर राजनीतिक प्रोपोगंडा में भले ही कोई ख़ास कमी नहीं आई हो लेकिन उस स्तर का राजनीतिक छुआछुत अब नहीं रहा. लेकिन इसके बावजूद उस ख़ास केटेगरी से आने के कारण प्रियंका को इसका ताना बार-बार सुनना पड़ेगा. उनके राजनीति में उतरने के एलान के साथ ही नरेन्द्र मोदी ने गांधी परिवार पर निशाना साधा था.
कहते हैं प्रियंका गांधी की राजनीति में उनकी दादी इंदिरा गांधी की झलक दिखती है. इंदिरा गांधी की राजनीतिक चुनौतियों ने उन्हें इतना मजबूत बनाया कि देश ने उन्हें 'आयरन लेडी' का संज्ञा दिया और अटल बिहारी वाजपेयी ने दुर्गा कहा. बाधाएं आयेंगी और आनी भी चाहिए, क्योंकि बिना इसके प्रियंका गांधी की पहचान इंदिरा गांधी के समान नहीं बन सकती.