‘अनुसूचित जाति/जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिये निश्चित, निर्णायक आधार तैयार करें’

By भाषा | Updated: October 26, 2021 21:43 IST2021-10-26T21:43:57+5:302021-10-26T21:43:57+5:30

'Prepare a definite, conclusive basis for the implementation of reservation in promotion to SC/ST' | ‘अनुसूचित जाति/जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिये निश्चित, निर्णायक आधार तैयार करें’

‘अनुसूचित जाति/जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिये निश्चित, निर्णायक आधार तैयार करें’

नयी दिल्ली, 26 अक्टूबर केंद्र ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के वास्ते केंद्र और राज्यों के लिए एक निश्चित और निर्णायक आधार तैयार करे।

केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि एससी/एसटी को वर्षों से मुख्यधारा से अलग रखा गया है और “हमें देश के हित में और उन्हें समान अवसर देने के लिये एक समानता (आरक्षण के रूप में) लानी होगी।”

वेणुगोपाल ने पीठ को बताया, “यदि आप एक निश्चित निर्णायक आधार नहीं रखते हैं जिसका पालन राज्य और केंद्र करें, तो बहुत सारे मुकदमे होंगे। इस मुद्दे का कभी अंत नहीं होगा कि किस सिद्धांत के आधार पर आरक्षण होना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “हम तब तक सीटें नहीं भर सकते जब तक योग्यता का मापदंड न हो लेकिन एक वर्ग है जिसे सदियों से मुख्यधारा से दरकिनार कर दिया गया है। ऐसे में, देश और संविधान के हित में, हमें समानता लानी होगी और वह मेरे विचार में आनुपातिक प्रतिनिधित्व है। यह समानता का अधिकार देता है।”

पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई भी शामिल हैं।

उन्होंने कहा, “हमें एक सिद्धांत की जरूरत है जिस पर आरक्षण किया जाना है।”

उन्होंने कहा, “यदि इसे राज्य पर छोड़ दिया जाता है, तो मुझे कैसे पता चलेगा कि पर्याप्तता कब तुष्ट होगी? क्या अपर्याप्त है। यही बड़ी समस्या है।”

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि जहां तक एससी/एसटी का संबंध है, सैकड़ों वर्षों के दमन के कारण, उन्हें सकारात्मक कार्रवाई द्वारा, योग्यता के अभाव से उबरने के लिए समान अवसर देना होगा।

उन्होंने कहा, “इसके परिणामस्वरूप योग्यता के संबंध में छूट दी जा रही है, चयन के संबंध में अंकों के अपवाद और इसी तरह के उपाय ताकि वे शिक्षा में सीट प्राप्त कर सकें और नौकरियों की प्रकृति के कारण, वे सैकड़ों वर्षों से हाथ से मैला ढोने आदि जैसे काम कर रहे हैं। उन्हें अछूत माना जाता था और वे बाकी आबादी के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते थे। इसलिए आरक्षण होना चाहिए।”

शीर्ष अदालत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मुद्दे पर दलीलें सुन रही थी।

वेणुगोपाल ने नौ राज्यों से एकत्र किए गए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि उन सभी ने बराबरी करने के लिए एक सिद्धांत का पालन किया है ताकि योग्यता का अभाव उन्हें मुख्यधारा में आने से वंचित न करे।

उन्होंने कहा कि देश में पिछड़े वर्गों का कुल प्रतिशत 52 प्रतिशत है।

उन्होंने कहा, “यदि आप अनुपात लेते हैं, तो 74.5 प्रतिशत आरक्षण देना होगा, लेकिन हमने कट ऑफ 50 प्रतिशत निर्धारित किया है।”

वेणुगोपाल ने कहा कि यदि शीर्ष अदालत आरक्षण पर फैसला मात्रात्मक आंकड़े और प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता के आधार पर राज्यों पर छोड़ देगी तो हमनें चीजें जहां से शुरू की थी वहीं पहुंच जाएंगे।

अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि एससी और एसटी से संबंधित लोगों के लिए समूह ए श्रेणी की नौकरियों में उच्च पद प्राप्त करना अधिक कठिन है और समय आ गया है जब शीर्ष अदालत को एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) द्वारा इन रिक्तियों को भरे जाने के लिये कुछ ठोस आधार देने चाहिए।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह एससी और एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने के अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगा क्योंकि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं।

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Web Title: 'Prepare a definite, conclusive basis for the implementation of reservation in promotion to SC/ST'

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