लोक अदालतों की सक्रियता के साथ ही सार्वजनिक जीवन में न्यायाधीशों की मौजूदगी भी बढ़ गई थी?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: August 18, 2020 17:27 IST2020-08-18T17:27:52+5:302020-08-18T17:27:52+5:30

मामले की सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण का कहना था कि- ट्वीट भले ही अप्रिय लगे, लेकिन अवमानना नहीं है. वे ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और वे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं करते.

Prashant Bhushan case Supreme Court Stop miscarriage justice “review the standards of criminal contempt” | लोक अदालतों की सक्रियता के साथ ही सार्वजनिक जीवन में न्यायाधीशों की मौजूदगी भी बढ़ गई थी?

प्रशांत भूषण के खिलाफ 14 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करने की अपील की गई है. (file photo)

Highlightsप्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट के 4 पूर्व जजों को लेकर ये टिप्पणियां की थी, जिस पर कोर्ट ने स्वतःसंज्ञान लेते हुए इसे न्यायालय की अवमानना माना था.वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के समर्थन में अब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई रिटायर्ड जस्टिस और रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट आ गए हैं.इससे संबंधित चिट्ठी पर तीन हजार से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें से 13 सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश हैं.

जयपुरः सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण को न्यायपालिका को लेकर किए गए दो ट्वीट के मामले में अवमानना का दोषी करार दिया है और 20 अगस्त 2020 को इस मामले में सुनवाई के बाद सजा तय होगी.

उल्लेखनीय है कि प्रशांत भूषण ने प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट के 4 पूर्व जजों को लेकर ये टिप्पणियां की थी, जिस पर कोर्ट ने स्वतःसंज्ञान लेते हुए इसे न्यायालय की अवमानना माना था. हालांकि, इस मामले की सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण का कहना था कि- ट्वीट भले ही अप्रिय लगे, लेकिन अवमानना नहीं है. वे ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और वे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं करते.

खबरें हैं कि अवमानना केस में सुप्रीम कोर्ट से दोषी करार दिए गए वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के समर्थन में अब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई रिटायर्ड जस्टिस और रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट आ गए हैं. यही नहीं, कई शिक्षाविद और वकीलों ने भी प्रशांत भूषण का समर्थन किया है और इससे संबंधित चिट्ठी पर तीन हजार से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें से 13 सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश हैं.

इसमें प्रशांत भूषण के खिलाफ 14 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करने की अपील की गई है. इसमें लिखा गया है कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका में जज और वकील, दोनों शामिल हैं, जो संवैधानिक लोकतंत्र में कानून के शासन का आधार है. दोनों के बीच संतुलन का अभाव या झुकाव, संस्था और राष्ट्र, दोनों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है.

आम आदमी को सस्ता और सुविधाजनक न्याय दिलाने में लोक अदालतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, लेकिन लोक अदालतों की बढ़ती सक्रियता के साथ ही सार्वजनिक जीवन में भी न्यायाधीशों की सक्रिय मौजूदगी बढ़ गई थी. इससे पहले आमतौर पर न्यायाधीश विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों में ही नहीं, सामाजिक और पारिवारिक कार्यक्रमों में भी आदर्श दूरी बना कर रखते थे.  

यह समझा जा सकता है कि सार्वजनिक जीवन में बढ़ती सक्रियता के कारण आदर्श व्यवहार बनाए रखना थोड़ा मुश्किल है, लिहाजा ऐसे किसी भी आचरण की ओर ध्यान आकर्षित किया जाए तो उसमें सुधार के प्रयास होने चाहिए. यह मामला इसलिए गंभीर है कि यह कानून के दो जानकार पक्षों के बीच है, अतः ऐसे मामलों की सुनवाई रिटायर्ड जजों की बैंच को करनी चाहिए.

यही नहीं, आजकल टीवी डिबेट के दौरान भी अदालतों के फैसलों पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष टिप्पणियां की जा रही हैं, जिन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. खासकर, बहस में भाग लेने वालों को भी विभिन्न फैसलों को लेकर टिप्पणियों के लिए उकसाने वाले सवाल पूछे जा रहे हैं, इस पर भी कार्रवाई होनी चाहिए.

न्यायिक अधिकार और अवमानना में बड़ा फर्क है, कानून में फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए या नहीं, इस पर विचार व्यक्त करना न्यायिक अधिकार है, लेकिन न्यायाधीश के द्वारा किसी को दी गई फांसी की सजा के विरोध में टिप्पणी करना अवमानना है!

Web Title: Prashant Bhushan case Supreme Court Stop miscarriage justice “review the standards of criminal contempt”

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