गुजरात मद्य निषेध कानून के खिलाफ याचिकाएं विचार योग्य: उच्च न्यायालय

By भाषा | Published: August 23, 2021 10:29 PM2021-08-23T22:29:58+5:302021-08-23T22:29:58+5:30

Petitions against Gujarat Prohibition Act maintainable: High Court | गुजरात मद्य निषेध कानून के खिलाफ याचिकाएं विचार योग्य: उच्च न्यायालय

गुजरात मद्य निषेध कानून के खिलाफ याचिकाएं विचार योग्य: उच्च न्यायालय

गुजरात उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि राज्य में शराब के उत्पादन, बिक्री और सेवन पर प्रतिबंध लगाने वाले गुजरात मद्य निषेध कानून, 1949 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं पर विचार किया जा सकता है।अदालत ने राज्य सरकार के इस तर्क को खारिज करते हुए शराबबंदी कानून पर नए सिरे से सुनवाई करने का फैसला दिया जिसमें कहा गया था कि उच्च न्यायालय इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकता क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने 1951 में इसे बरकरार रखा था। मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की पीठ ने कहा कि अदालत ने याचिकाओं को ‘‘विचार योग्य और गुण-दोष के आधार पर सुनवाई’’ के लिए तथा 12 अक्टूबर को अंतिम सुनवाई के लिए रखा है। इस प्रकार, पीठ ने याचिकाओं के अदालत में टिकने के संबंध में राज्य सरकार द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर दिया। अदालत ने याचिकाओं को बरकररार रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम के कुछ प्रावधानों को 'निजता के अधिकार' का उल्लंघन करने के आधार पर चुनौती दी थी, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2017 के फैसले में पहली बार मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी। न्यायालय ने कहा, ''निजता के अधिकार के तहत आने वाली व्यक्तिगत खाद्य पसंद के संदर्भ में इसका पहले कभी परीक्षण नहीं किया गया है।'' महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने उच्च न्यायालय के सामने संकेत दिया था कि सरकार आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला कर सकती है। सरकार का कहना है कि किसी भी कानून या किसी नए कानून या अतिरिक्त प्रावधान की वैधता पर गौर करने का अधिकार किसी अदालत को नहीं है, जब इसे सर्वोच्च अदालत ने अतीत में बरकरार रखा है। उच्चतम न्यायालय ने 1951 में अपने फैसले में इस कानून को बरकरार रखा था। त्रिवेदी ने अपनी दलील में कहा था कि जिस कानून को उच्चतम न्यायालय ने आज वैध कर दिया है, उसे कल अमान्य करार दिया जा सकता है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ही इस पर फैसला करने के लिए सही मंच है न कि गुजरात उच्च न्यायालय। दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस मामले को गुण-दोष के आधार पर लिया जाना चाहिए, क्योंकि दलीलों में जिन प्रावधानों को चुनौती दी गयी है, वे 1951 में किए गए प्रावधानों से अलग हैं क्योंकि उनमें बाद के वर्षों में संशोधन किया गया। याचिकाओं में गुजरात मद्य निषेध कानून, 1949 की धारा 12, 13 (शराब के उत्पादन, खरीद, आयात, परिवहन, निर्यात, बिक्री, कब्जे, उपयोग और खपत पर पूर्ण प्रतिबंध), 24-1 बी, 65 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ताओं में से एक ने दलील दी है कि प्रावधान ‘मनमाने, अतार्किक, अनुचित, और भेदभावपूर्ण' हैं और ‘‘छह दशकों से अधिक समय से मद्य निषेध के बावजूद तस्करों, संगठित आपराधिक गिरोह के नेटवर्क और भ्रष्ट अधिकारियों की साठगांठ के कारण शराब की आपूर्ति हो रही है।

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Web Title: Petitions against Gujarat Prohibition Act maintainable: High Court

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