सेना में महिलाओं का स्थायी कमीशन, SC ने केंद्र को फैसला लागू करने के लिए दिया एक महीने का समय

By भाषा | Updated: July 7, 2020 15:38 IST2020-07-07T15:38:11+5:302020-07-07T15:38:11+5:30

शीर्ष अदालत ने “मात्र विभिन्न स्टाफ नियुक्तियों में” और “केवल स्टाफ नियुक्तियों पर” की अभिव्यक्ति के अमल पर रोक लगाकर महिलाओं की कमांड पोस्टिंग की बाधा को भी दूर कर दिया। इसने कहा कि 20 वर्ष से ज्यादा सेवारत एसएससी महिला सैन्य अधिकारियों जिन्हें स्थायी कमीशन नहीं मिला है उन्हें नीतिगत फैसले के तहत पेंशन पर सेवानिवृत्त किया जाना चाहिए।

Permanent Commission of Women in the Army, SC gives one month to Center to implement decision | सेना में महिलाओं का स्थायी कमीशन, SC ने केंद्र को फैसला लागू करने के लिए दिया एक महीने का समय

उच्चतम न्यायालय ने 17 फरवरी को अपने ऐतिहासिक फैसले में निर्देश दिया था कि सेना में सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन और कमांड पोस्टिंग दी जाए।

HighlightsSC ने सेना में स्थायी कमीशन देने के अपने फैसले को लागू करने के लिए केंद्र को मंगलवार को एक और माह का समय दे दिया। कोर्ट ने कहा कि केंद्र को उसके फैसले में दिए गए सभी निर्देशों का अनुपालन करना होगा।

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सभी सेवारत शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी कमीशन देने के अपने फैसले को लागू करने के लिए केंद्र को मंगलवार को एक और माह का समय दे दिया। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि केंद्र को उसके फैसले में दिए गए सभी निर्देशों का अनुपालन करना होगा। केंद्र ने पीठ को बताया कि मुद्दे पर निर्णय लेने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है और केवल आधिकारिक आदेश जारी करना ही रह गया है। इसने कहा कि अदालत के आदेश का अक्षरश: पालन किया जाएगा। शीर्ष अदालत का यह निर्देश केंद्र की ओर से दायर एक आवेदन पर आया जिसमें उसने कोविड-19 वैश्विक महामारी का हवाला देकर फैसले के क्रियान्वयन के लिए छह माह का समय मांगा था।

उच्चतम न्यायालय ने 17 फरवरी को अपने ऐतिहासिक फैसले में निर्देश दिया था कि सेना में सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन और कमांड पोस्टिंग दी जाए। शीर्ष अदालत ने महिलाओं की शारीरिक सीमा का हवाला देने वाले केंद्र के रूख को खारिज करते हुए इसे “लैंगिक रूढ़ियों” और “महिला के खिलाफ लैंगिक भेदभाव” पर आधारित बताया था। इसने केंद्र को निर्देश दिया था कि तीन माह के भीतर सभी सेवारत शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने पर विचार किया जाएगा, भले ही वे 14 वर्ष या 20 वर्ष सेवाएं दे चुकी हों। न्यायालय ने कहा था कि युद्धक भूमिका में महिला अधिकारियों की तैनाती नीतिगत मामला है और दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2010 के अपने फैसले में इसपर विचार नहीं किया था।

शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार की 25 फरवरी 2019 की नीति को स्वीकार किया जिसमें शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) महिला सैन्य अधिकारियों को भारतीय सेना की सभी 10 शाखाओं में स्थायी कमीशन दिये जाने की बात है। नीति के बावजूद इस मामले में उच्चतम न्यायालय के समक्ष केंद्र का रुख था कि सेना अधिनियम के प्रावधान इस बात पर विचार करते हैं कि महिलाओं को सिर्फ उन्हीं शाखाओं में नियुक्ति की इजाजत होगी जिसकी इजाजत सरकार देती है।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि महिला अधिकारियों ने पहले भी देश का सम्मान बढ़ाया है और उन्हें सेना पदक समेत कई वीरता पदक मिल चुके हैं। इसने केंद्र की उस दलील को खारिज कर दिया था कि महिला अधिकारियों को दैहिक सीमा, किसी यूनिट में केवल पुरुष होने और संघर्ष क्षमता के चलते स्थायी कमीशन नहीं दिया सकता और कहा कि संविधान के मूल्यों की पहचान के लिए सोच को बदलना होगा। शीर्ष अदालत ने कहा, “लैंगिक आधार पर उनकी क्षमताओं को लेकर आशंका जाहिर करना न सिर्फ उनकी गरिमा को कम करता है बल्कि भारतीय सेना के सदस्य के तौर पर भी उनका अपमान है। पुरुष और महिलाएं समान नागरिक के तौर पर साझा मिशन के लिये काम करते हैं।”

इसने कहा, “अदालत के सामने रखी गई दलीलें लैंगिक रूढ़ियों पर आधारित हैं जो यह मानती है कि घरेलू जिम्मेदारियां पूरी तरह से महिलाओं की होती हैं।” इसने कहा था कि महिला और पुरुष के बीच जन्मजात शारीरिक अंतरों का हवाला देना बेहद रूढ़िवादी और संवैधानिक दृष्टि से दोषपूर्ण धारणा है कि महिलाएं ‘‘कमजोर” होती हैं और उन कार्यों को नहीं कर सकती जो उनके लिए “बहुत कठिन” है।

केंद्र की दलीलों को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि यह पाया गया है कि महिला सैन्य अधिकारियों को इस आधार पर स्थायी कमीशन देने से इनकार करना कि इससे यूनिट के खास समीकरण प्रभावित होंगे, महिला अधिकारियों पर एक अनावश्यक बोझ है। पीठ ने कहा कि सभी सैन्य महिला एसएससी अधिकारियों को स्थायी कमीशन का विकल्प दिया जाना चाहिए और अगर 14 वर्ष से ज्यादा की सेवा वाली महिला सैन्य अधिकारी स्थायी कमीशन के विकल्प को नहीं चुनती हैं तब वे 20 वर्ष तक सेवा के लिए योग्य हैं, जब तक ये पेंशनयोग्य सेवा न हो जाए। इसमें कहा गया कि एक बारगी उपाय के तहत पेंशनयोग्य सेवा को हासिल करने तक सेवा में रहने का लाभ उन सभी मौजूदा एसएससी महिला अधिकारियों पर लागू होना चाहिए जिनकी सेवा 14 वर्ष से ज्यादा की हो चुकी है और उन्हें स्थायी कमीशन नहीं मिला है।

शीर्ष अदालत ने “मात्र विभिन्न स्टाफ नियुक्तियों में” और “केवल स्टाफ नियुक्तियों पर” की अभिव्यक्ति के अमल पर रोक लगाकर महिलाओं की कमांड पोस्टिंग की बाधा को भी दूर कर दिया। इसने कहा कि 20 वर्ष से ज्यादा सेवारत एसएससी महिला सैन्य अधिकारियों जिन्हें स्थायी कमीशन नहीं मिला है उन्हें नीतिगत फैसले के तहत पेंशन पर सेवानिवृत्त किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के बाद केंद्र के लिए महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देना अनिवार्य था। केंद्र की 25 फरवरी, 2019 के नीतिगत निर्णय पर शीर्ष अदालत ने कहा कि यह समान अवसर के महिला अधिकारियों की अधिकार को दी गई मान्यता है। न्यायालय ने पाया कि इस समय सेना में 1,653 महिला अधिकारी हैं जो सेना में कुल अधिकारियों का महज चार प्रतिशत है।

Web Title: Permanent Commission of Women in the Army, SC gives one month to Center to implement decision

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