दिल्ली : भारत में तीसरी लहर को लेकर लोग डरे हुए है। डेल्टा प्लस वेरिएंट कितना संक्रामक होगा और इससे कितने लोगों की जान जा सकती है । ऐसे तमाम जरूरी सवाल आम लोगों के मन में है। सरकार ने डेल्टा प्लस वेरिएंट को ’मैटर ऑफ कंसर्न’ के रूप में सूचीबद्ध किया है, जिसे लेकर भी लोग खासा परेशान हैं। दरअसल ऐसा माना जा रहा है कि डेल्टा प्लस वेरिएंट अधिक संक्रामक है और इस वेरिएंट के आगे कई वैक्सीन बेअसर हैं। इस बारे में एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने न्यूज एजेंसी एएनआई से कहा कि अगर हम कोविड-19 के सभी सुरक्षा नियमों का पालन करते हैं तो हम सभी तरह के वेरिएंट से सुरक्षित रह सकते हैं ।
साथ ही डॉक्टर गुलेरिया ने यह भी कहा कि डेल्टा प्लस वेरिएंट अधिक संक्रामक और जानलेवा है या नहीं इसके बारे में अधिक डाटा उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि वैक्सीन के मिश्रण पर हमें और अधिक डाटा की आवश्यकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि यह प्रभावी हो सकता है। हालांकि एम्स के निदेशक ने स्पष्ट किया कि यह कहने से पहले हमें और डाटा की आवश्यकता है कि कोविड-19 वैक्सीन डोज को मिलाने की नीति को आजमाया जा सकता है या नहीं।
दरअसल हाल ही में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक अध्ययन में यह बात सामने आई थी। अध्ययन के मुताबिक, एस्ट्राजेनेका और फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की खुराक बारी-बारी से लेने पर एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित की जा सकती है, जो कोविड-19 से लड़ने में कारगर साबित हो सकती है। हालांकि अभी इस पर और अध्ययन की बात कही जा रही है ।
आपको बता दें डेल्टा प्लस वेरिएंट भारत में पहली बार 11 जून को पहचाना गया था और अब तक यह 12 देशों में पहुंच चुका है। देश में महाराष्ट्र, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, तमिलनाडु, कर्नाटक और उड़ीसा सहित 12 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में डेल्टा प्लस वेरिएंट के मामले सामने आए हैं। अब तक परीक्षण किए गए 45,000 नमूनों में से देश में इस प्रकार के कुल 51 मामले पाए गए हैं।
हाल ही में टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के प्रमुख डॉ एनके अरोड़ा ने पीटीआई से बात करते हुए कहा कि डेल्टा प्लस वेरिएंट से फेफड़ों की समस्या अधिक हो रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह बड़ी बीमारी का कारण बन सकता है या उच्च संक्रामक क्षमता रखता है।