आमों की मलिका 'नूरजहां' इस सीजन पेड़ों से गायब, मायूस हुए शौकीन
By भाषा | Updated: March 30, 2020 15:45 IST2020-03-30T15:45:09+5:302020-03-30T15:45:09+5:30
अफगानिस्तानी मूल की मानी जाने वाली आम प्रजाति नूरजहां के गिने-चुने पेड़ मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। यह इलाका गुजरात से सटा है।

नूरजहां के फल तकरीबन एक फुट तक लंबे हो सकते हैं। इनकी गुठली का वजन 150 से 200 ग्राम के बीच होता है।
इंदौर: आमों की भारी-भरकम मलिका के रूप में मशहूर किस्म 'नूरजहां' के शौकीनों के लिए बुरी खबर है। कुदरत की मार के चलते आम की इस दुर्लभ किस्म के पेड़ों पर बौर (फूल) ही नहीं आए हैं, जो पहले ही जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से जूझ रही है। अफगानिस्तानी मूल की मानी जाने वाली आम प्रजाति नूरजहां के गिने-चुने पेड़ मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। यह इलाका गुजरात से सटा है।
इंदौर से करीब 250 किलोमीटर दूर कट्ठीवाड़ा में इस प्रजाति की खेती के विशेषज्ञ इशाक मंसूरी ने रविवार को कहा, 'इस साल नूरजहां के पेड़ों पर बौर ही नहीं आए हैं। हमारे क्षेत्र में आम की कुछ अन्य प्रजातियों के पेड़ों पर भी बौर नहीं आए हैं।' उन्होंने बताया, 'कभी-कभी ऐसा होता है, जब नूरजहां के पेड़ों पर एक साल बौर आते हैं और इसके अगले साल इसके वृक्ष बौरों से वंचित हो जाते हैं। इसे कुदरत का खेल ही कहा जा सकता है।'
मंसूरी के मुताबिक, पिछले साल अनुकूल मौसमी हालात के चलते नूरजहां के पेड़ों पर खूब बौर आए थे और फसल भी अच्छी हुई थी। उन्होंने बताया, 'पिछले साल नूरजहां के फलों का वजन औसतन 2.75 किलोग्राम के आस-पास रहा था। तब शौकीनों ने इसके केवल एक फल के बदले 1,200 रुपये तक की ऊंची कीमत भी चुकायी थी।' नूरजहां के पेड़ों पर आमतौर पर जनवरी से बौर आने शुरू होता है और इसके फल जून के आखिर तक पककर तैयार होते हैं।
नूरजहां के फल तकरीबन एक फुट तक लंबे हो सकते हैं। इनकी गुठली का वजन 150 से 200 ग्राम के बीच होता है। बहरहाल, यह बात चौंकाने वाली है कि किसी जमाने में नूरजहां के फल का औसत वजन 3.5 से 3.75 किलोग्राम के बीच होता था।
जानकारों के मुताबिक, पिछले एक दशक के दौरान मॉनसूनी बारिश में देरी, अल्पवर्षा, अतिवर्षा और आबो-हवा के अन्य उतार-चढ़ावों के कारण नूरजहां के फलों का वजन पहले के मुकाबले घटता देखा गया है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण आम की इस दुर्लभ किस्म के वजूद पर संकट भी मंडरा रहा है।