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सुप्रीम कोर्ट ने गुप्तचर अधिकारी को अनिवार्यरूप से सेवानिवृत्त करने का नियम सही ठहराया

By भाषा | Updated: April 24, 2020 21:06 IST

पीठ ने नियम 135 के तमाम बिन्दुओं पर विस्तार से विचार किया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत अपनायी जाने वाली प्रक्रिया अनिवार्य सेवानिवृत्ति के मामले में लागू नहीं की जा सकती।

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ठळक मुद्देसुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने संबंधी 35 साल पुराने नियम की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी।कोर्ट ने निशा प्रिया भाटिया को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने के सरकार के फैसले के खिलाफ दायर चार याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण व्यवस्था में किसी गुप्तचर अधिकारी के बेनकाब हो जाने या नियुक्ति योग्य नहीं रहने की वजह से उसे अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने संबंधी 35 साल पुराने नियम की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वर की पीठ ने रॉ के 1975 के भर्ती, काडर और सेवा नियमावली के नियम 135 के तहत निशा प्रिया भाटिया को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने के सरकार के फैसले के खिलाफ दायर चार याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।

इन याचिकाओं में उठाए गए विभिन्न मुद्दों के साथ ही यह भी दलील दी गयी थी कि यह नियम संविधान के अनुच्छेद 311 का उल्लंघन करता है। यह अनुच्छेद केन्द्र या राज्य सरकार में सिविल कर्मचारी के रूप में नियुक्त व्यक्ति की बर्खास्तगी, पद से हटाना या पदावनति करने से संबंधित है। पीठ ने निशा प्रिया भाटिया को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने के निर्णय को सही ठहराते हुये अपने फैसले में 1975 के नियमों के नियम 135 को वैध करार देते हैं और कहते हैं कि इसमें किसी प्रकार की असंवैधानिकता नहीं हैं।

पीठ ने नियम 135 के तमाम बिन्दुओं पर विस्तार से विचार किया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत अपनायी जाने वाली प्रक्रिया अनिवार्य सेवानिवृत्ति के मामले में लागू नहीं की जा सकती। इस नियम में अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किये जाने पर मिलने वाले लाभों का भी जिक्र है और इसमे कहा गया है कि संगठन का कोई भी अधिकारी अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया जा सकता है अगर उसकी गुप्तचर अधिकारी के रूप में उसकी गोपनीयता खत्म हो गयी है या वह सुरक्षा कारणों से संगठन में नौकरी करने योग्य नहीं रह गया है अथवा अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान वह जख्मी या दिव्यांग हो गया हो।

न्यायालय ने रॉ की इस पूर्व अधिकारी की याचिकाओं का निस्तारण करते हुए कहा कि उसकी पेंशन की गणना सेवानिवृत्ति की वास्तविक तारीख से नहीं बल्कि उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार सेवानिवृत्ति की काल्पनिक तारीख के आधार पर की जायेगी और अगर इसके अतिरिक्त भी किसी राशि का भुगतान करना है तो ऐसा आज से छह सप्ताह के भीतर करना होगा।

पीठ ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि दो वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ यौन शोषण के इस पूर्व अधिकारी के आरोपों की जांच के लिये आंतरिक समिति के गठन में विलंब हुआ। पीठ ने केन्द्र को निर्देश दिया कि वह इस पूर्व अधिकारी को एक लाख रूपए बतौर मुआवजा दे। न्यायालय ने कहा कि इस तथ्य के बारे में कोई विवाद नहीं है कि यौन उत्पीड़न की याचिकाकर्ता की शिकायत प्रक्रिया संबंधी अज्ञानता और विभाग में उसके वरिष्ठ अधिकारियों के रवैये को दर्शाती है।

निशा प्रिया भाटिया ने विभिन्न हैसियत से रॉ में काम किया था और उन्होंने शीर्ष अदालत में कई अपील दायर की थीं। इनमें अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने के विभाग के आदेश को सही ठहराने संबंधी दिल्ली उच्च न्यायालय के 2019 के फैसले के खिलाफ अपील भी शामिल थी।

इससे पहले, केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण ने उसे अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त करने का आदेश निरस्त करते हुये सेवा मे बहाल करने का निर्देश दिया था। इस मामले में अनेक उतार चढ़ाव आये थे। इसमें एक घटना तो याचिकाकर्ता द्वारा प्रधानमंत्री कार्यालय के बाहर आत्महत्या करने के प्रयास से भी संबंधित थी।

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