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घृणा अपराध से करें न कि अपराधी से, दोषी मुकेश के वकील ने निर्भया मामले पर सुप्रीम कोर्ट में कहा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 28, 2020 16:01 IST

निर्भया कांड पर मुजरिम मुकेश के वकील ने उच्चतम न्यायालय में कहा, ‘‘घृणा अपराध से करें न कि अपराधी से।’ केंद्र ने कोर्ट से कहा कि निर्भया मामले में राष्ट्रपति फैसलों के खिलाफ किसी अपील पर विचार नहीं कर रहे। राष्ट्रपति को क्षमादान के संदर्भ में हर प्रकिया पर गौर करने के बजाय खुद को संतुष्ट करना होता है।

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ठळक मुद्देहत्याकांड में सजायाफ्ता चारों दोषियों में से एक की याचिका पर मंगलवार को फैसला सुरक्षित रखा।राष्ट्रपति द्वारा उसकी दया याचिका को खारिज किये जाने को चुनौती दी थी।

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को निर्भया प्रकरण के चार दोषियों में से एक मुकेश कुमार सिंह से सवाल किया कि वह यह आरोप कैसे लगा सकता है कि उसकी दया याचिका अस्वीकार करते समय राष्ट्रपति ने सही तरीके से विचार नहीं किया।

निर्भया कांड पर मुजरिम मुकेश के वकील ने उच्चतम न्यायालय में कहा, ‘‘घृणा अपराध से करें न कि अपराधी से।’ केंद्र ने कोर्ट से कहा कि निर्भया मामले में राष्ट्रपति फैसलों के खिलाफ किसी अपील पर विचार नहीं कर रहे। राष्ट्रपति को क्षमादान के संदर्भ में हर प्रकिया पर गौर करने के बजाय खुद को संतुष्ट करना होता है।

उच्चतम न्यायालय ने निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्याकांड में सजायाफ्ता चारों दोषियों में से एक की याचिका पर मंगलवार को फैसला सुरक्षित रखा जिसने राष्ट्रपति द्वारा उसकी दया याचिका को खारिज किये जाने को चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति आर भानुमति की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि वह दोषी मुकेश कुमार सिंह की याचिका पर बुधवार को फैसला सुनाएगी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 17 जनवरी को मुकेश की दया याचिका को खारिज कर दिया था। मामले के चारों दोषियों को एक फरवरी को फांसी दी जानी है। 

केंद्र ने कहा कि ऐसे मामलों में उच्चतम न्यायालय की न्यायिक समीक्षा की शक्ति बहुत सीमित होती है। क्षमा याचिका पर निर्णय करने में देरी का अमानवीय असर होगा। निर्भया कांड में मृत्युदंड की सजा के खिलाफ मुकेश की दया याचिका पर निर्णय करने के लिए गृह मंत्रालय ने सारी सामग्री राष्ट्रपति के पास भेजी थी। 

मृत्युदंड के लिए मुजरिम को जेल में कालकोठरी में नहीं रखा गया है जैसा आरोप लगाया है, सजा घटाने का कोई आधार नहीं बताया गया है। केंद्र ने कहा कि यह दलील कि मुकेश के साथ जेल में बुरा बर्ताव किया गया, उस व्यक्ति के लिए दया का आधार नहीं हो सकती जिसने जघन्य अपराध किया है।

न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने मुकेश कुमार सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश से सवाल किया कि वह यह दावा कैसे कर सकते हैं कि राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका पर विचार के समय सारे तथ्य नहीं रखे गये थे। पीठ ने सवाल किया, ‘‘आप कैसे कह सकते हैं कि ये तथ्य राष्ट्रपति महोदय के समक्ष नहीं रखे गये थे? आप यह कैसे कह सकते हैं कि राष्ट्रपति ने सही तरीके से विचार नहीं किया?’’

दोषी के वकील ने जब यह कहा कि राष्ट्रपति के समक्ष सारे तथ्य नहीं रखे गये थे तो सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि राष्ट्रपति के समक्ष सारा रिकार्ड, साक्ष्य और फैसला पेश किया गया था। मुकेश कुमार सिंह ने आरोप लगाया कि राष्ट्रपति द्वारा उसकी दया याचिका अस्वीकार करने में प्रक्रियागत खामियां हैं। उसका दावा है कि दया याचिका पर विचार करते समय उसे एकांत में रखने सहित कतिपय परिस्थितियों और प्रक्रियागत खामियों को नजरअंदाज किया गया।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने मौत की सजा के मामले में कई फैसलों और दया करने के राष्ट्रपति के अधिकार का हवाला दिया। उन्होने यह भी दलील दी कि राष्ट्रपति ने दुर्भावनापूर्ण, मनमाने और सामग्री के बगैर ही दया याचिका खारिज की। यह पीठ राष्ट्रपति द्वारा 17 जनवरी को मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका खारिज किये जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है।

दया याचिका खारिज होने के बाद ही अदालत ने चारों मुजरिमों को एक फरवरी को मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाने के लिये आवश्यक वारंट जारी किया था। 23 वर्षीय निर्भया से दक्षिण दिल्ली में चलती बस में 16-17 दिसंबर, 2012 की रात छह व्यक्तियों ने सामूहिक बलात्कार के बाद उसे बुरी तरह जख्मी हालत में सड़क पर फेंक दिया था। निर्भया का बाद में 29 दिसंबर को सिंगापुर के एक अस्पताल में निधन हो गया था।

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