लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का करारा दांव, दूसरी पार्टियां भी मोदी के नाम पर वोट मांगने को मजबूर!
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 7, 2019 07:53 AM2019-01-07T07:53:40+5:302019-01-07T07:57:01+5:30
ऐसे वक्त में देखने को मिल रहा है जब राजनीतिक गलियारों में महागठबंधन की चर्चा जोरों पर है. वहीं राजग में गठबंधन का जज्बा खत्म हो जाता रहा है.
भाजपा नेतृत्व की राजग संयोजक जैसे पद को दोबारा जीवित करने में कोई रूचि नहीं दिखती. इसका जाहिर सा मतलब यही होगा कि भाजपा के सहयोगी दलों को भी आगामी लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही नाम पर वोट मांगने पड़ेंगे.
कोशिश तो लोकसभा 2019 के मुकाबले को मोदी बनाम राहुल गांधी बनाने की हो रही है, लेकिन संकेतों के मुताबिक भाजपा को कई मोर्चों पर कई मुद्दों और कई राजनीतिज्ञों से मुकाबला करना होगा. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पहले राजग में संयोजक का पद था, लेकिन राजग की दूसरी पारी में यह नदारद हो गया और राजग-3 में भी किसी क्षेत्रीय नेता को इस पद पर विराजमान करने में भाजपा की कोई रूचि दिखाई नहीं देती.
यह सब ऐसे वक्त में देखने को मिल रहा है जब राजनीतिक गलियारों में महागठबंधन की चर्चा जोरों पर है. यहां जज्बा नहीं वहां गड्डमड्ड राजग में जहां गठबंधन का जज्बा दिखाई नहीं देता वहीं भाजपा विरोधी दलों का संप्रग अभी औपचारिक आकार नहीं ले पाया है. राजग में प्रमुख दल भाजपा इस बात को लेकर अनिश्चित है कि शिवसेना उसके साथ रहेगी या नहीं.
इस बीच लोजपा, अगप, अपना दल जैसे सहयोगी भी असमंजस में दिखाई दे रहे हैं. भाजपा विरोधी कैम्प की स्थिति भाजपा विरोधी कैम्प में सपा-बसपा ने कांग्रेस से दूरी रखना शुरू कर दी है. तृणमूल कांग्रेस भी कांग्रेस के साथ कुछ वजहों से सहज नहीं हो पाती.
आम आदमी पार्टी (आप) ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में रूचि दिखाई तो है, लेकिन पंजाब, हरियाणा में विस्तार की आप की ख्वाहिश के कारण यह गठबंधन भी भरोसेमंद नहीं कहा जा सकता. राकांपा, द्रमुक, तेदेपा जहां कांग्रेस के साथ हैं, वहीं जनता दल (एस) कर्नाटक में कांग्रेस का वफादार साथी नहीं रह सकता. तेदेपा, तेलंगाना राष्ट्र समिति और जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस अपनी राजनीतिक सुविधा के मुताबिक कदम उठा सकते हैं.